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Showing posts from January, 2020
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ज्जब हुआ रूह-ए-अक्स-मोहब्बत का रूयाब जिस पर दफ़्न हो कर क़ब्र में भी तुझे पाने की इक ख़्वाहिश ना गई। जुड़ गया दुआ-ओ-इश्क में महबूब का नाम जिस पल मिट गई हर तमन्ना फिर भी एहसासों से दिलरूबाई ना गई। दर्ज कर गया हर लफ़्ज़ -ए-ग़ज़ल प्रीत का ख़याल जिस पर अंदाज़ ए बयां करके भी क़लम से तेरे ज़िक्र की लिखाई ना गई। पड़ गया हुस्न -ए-रूख-याद का परतव जिस पर ख़ाक में मिल के भी इस दिल की सफ़ाई ना गई।❤️❤️
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मनाया है अपनी नींद को बस इसी बहाने पर..कि वो मिलने आयेगा ज़रूर यहीं पलकों के चिनारों पर। दबा ली बेचैनियां अपनी धड़कनों की बस इसी मुहारे पर..कि वो हर धड़क चूम लेगा सीने से लग मेरे दिल के मीनारों पर। सबर् कर लिया मैंने उसके इंतज़ार का बस इसी इशारे पर..कि वो रूबरू आयेगा ज़रूर प्रीत के दर ओ दीवारों पर। कटा है मेरा सफ़र बस इसी सहारे पर..कि वो खड़ा है वहाँ दूसरे किनारे पर।❤️❤️
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दुनिया की हर शैय से ज़्यादा मुझे तेरा एहसास पसंद है अगली बार आओ तो... मेरे रूबरू होने रहने का वक़्त ले आना। ख़्वाहिश नहीं मुझे कंगन ग़ज़रे की तेरी बाँहों का हार मुझे बेहद पसंद है अगली बार आओ तो... देर तलक महसूस होने का वक़्त ले आना। वास्ता नहीं मुझे फ़िज़ा के रंगीन होने से मुझे तेरी महक में लिपटा तेरा अक्स पसंद है अगली बार आओ तो... खुद को मुझ में छोड़ जाने का वक़्त ले आना। जुस्तजू नहीं सजी महफ़िलें की मुझे प्रीत को बस तेरा इश्क़ पसंद है अगली बार आओ तो... प्रीत की रूह में ज्जब हो जाने का वक़्त ले आना। मुझे महँगे तोहफ़े पसंद हैं अगली बार आओ तो... बस बहुत सा वक़्त ले आना।❤️❤️
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मेरी दहलीज़ पे तेरे क़दमों की आहट को तकना बेशुमार रहेगा मौसम चाहे कितने भी बदलें.... मेरे कानों को सिर्फ़ तेरी दस्तक का इंतज़ार रहेगा। मेरे जिस्म के हर ज़र्रे तेरा स्पर्श तेरी प्रीत सा बरक़रार रहेगा उम्र चाहे कितनी भी ढल जाये.... मेरे अक्स को तेरी महक में लिपटने का बेहद इंतज़ार रहेगा। मेरे हाथों में तेरे हाथों की पकड़ हिफ़ाज़त सा इज़हार रहेगा बदल जाये बेशक तक़दीर कितनी.... मेरी लकीरों में महफ़ूज़ तेरे इश्क़ का इंतज़ार रहेगा। इन आँखों को तेरे दीदार का इंतज़ार रहेगा बीत जाये कितना भी वक़्त .... इस दिल को हमेशा तेरा इंतज़ार रहेगा।❤️❤️
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प्रेम ....जिसमें.... शिकायतों पर इख़्तियार दोनों को है....मगर... रूसवा हो कर भूलने का हक़ किसी को नहीं। प्रेम .....जिसमें प्यार से भरे इल्ज़ाम की अदा दोनों को है....पर... बेवफ़ा होने का हक़ किसी को नहीं । प्रेम .....जिसमें.... इक दूजे में खो जाने का जूनूं दोनों को है....मगर.... इक दूसरे को खो देने का हक़ किसी को भी नहीं। प्रेम .....जिसमें.... जिस्मों की सतह पे प्रीत लिखने की इजाज़त दोनों को है....मगर..... बदनाम अल्फ़ाज़ों का हक़ नहीं किसी को भी नहीं । प्रेम .....जिसमें.... गुस्सा होने का हक़ दोनों को है....पर.... जुदा होने का हक़ किसी को नहीं।❤️❤️
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शब ए चाँद  हूँ मैं सहर बादामी भी हूँ ओस की नर्म बूँद हूँ समन्दर का सुनामी भी हूँ बरस जांऊ कहीं टूट कर कहीं सहरा हूँ , नम नहीं कहीं ज़िक्र ही मेरा कहीं बेमानी हूँ  मैं। टूटी सी इक उम्मीद हूँ मैं पूरा सा इक ख़्वाब भी हूँ कहीं कोढ़ी के मोल में हूँ और कहीं नायाब भी हूँ कहीं रूह तलक मैं कहीं अक्स भी नहीं सवाल हूँ मैं कहीं जवाब भी हूँ । नज़्म में दर्द हूँ मैं इक मरहम ग़ज़ल भी हूँ कहीं लफ़्ज़ों का है सूखा कहीं अल्फाज सजल भी हूँ प्रीत हूँ मैं बेहिसाब कहीं इक बूँद इश्क़ भी नहीं कहीं सिफ़र (zero)हूँ मैं और कहीं फ़ज़ल भी हूँ । एक रास्ता हूँ मैं मुसाफ़िर भी हूँ सजदे में हूँ मैं काफ़िर भी हूँ बहुत दूर तक है कहीं कुछ भी नहीं आग़ाज़ हूँ मैं आख़िर भी हूँ ।❤️❤️
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सुनो जाना..... बातें करना तो हम तब भी चाहेंगे तुमसे जब..तुम्हारे पास फ़ुरसत और... हमारी जुबां पे लफ़्ज़ों की कमी होगी। सुनो सनम..... हमकदम बन चलना तब भी चाहेंगे तुम संग जब..तुम्हारे सब मोड़ बंद हो जायेंगे मुझ तक और..... हमारे क़दमों में तब हरकत भी नहीं होगी। सुनो ना जाना..... इश्क़ का जूनूं हम तब भी चाहेंगे तुमसे जब...तेरी ज़िंदगी में प्रीत और..... हमारी ज़िंदगी की प्रीत रूखसत ए दुनिया होगी। देखो सनम..... मिलना तो हम तब भी चाहेंगे तुमसे जब...तुम्हारे पास वक़्त और..... हमारे पास साँसों की कमी होगी।❤️❤️
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लोग कहते हैं..... दर्द सह कर सुकूं ए राहत मिल जाती है.....इक दिन फिर..ज़ख़्म हर लम्हा क्यों .. रिसते हैं? सुना है लोगों से..... दुख के बाद सुख की घड़ी आती है.....इक दिन फिर...शख़्स सुख की तालाश में क्यों ...भटकते रहते हैं? लोग कहते हैं..... मोहब्बत ख़ूबसूरत एहसास रंग लाती है.....इक दिन फिर....महबूब के हिजर् में क्यों ....प्रीत तड़प बेनूर होती है? लोगों से सुना है..... सफ़र बेशक दुशवार हो मंज़िल हासिल होती है...इक दिन फिर.....प्रेमी बिन मंज़िल क्यों....अधूरे रह जाते हैं? लोग कहते हैं..... मौत सबको आती है.....इक दिन फिर....इंसा रोज़ रोज़ क्यों .....मरते हैं?❤️❤️
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बंधन रिवाजों के कुछ ऐसे हमें जकड़े थे रूह ए सनम संग इश्क़ की राह हम  चल न पाये। मुसकुराहटों के बोझ कुछ लबों पे ऐसे रखे थे ग़ुबार खुद में दबा कर हम तो खुल कर रो भी न पाये। फ़र्ज़ों के सौग़ात कुछ यूँ हमको अता हुए थे बस यूँ तकते रहे दूर जाते दिल के रिश्तों को बेबस हम रोक भी न पाये। परवाह ,इज़्ज़त प्रीत को कुछ इस क़दर नज़र हुए थे मर गए थे भीतर फिर जी कर भी हम ज़िंदा हो न पाये। दाग शराफ़त के कुछ ऐसे लगे थे ज़िंदगी भी खुल कर फिर हम जी न पाये।❤️❤️
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भरी महफ़िल में हमें खुद में खोया देख कर हर नज़र सवाल उठे तेरे अक्स को छुपाते हमने कह दिया ये तन्हाई के राग हैं। हर आहट दहलीज़ पे भागते देख कर हर किसी के सवाल उठे तेरे आने की चाहत में तेरी प्रीत ने कह दिया ये इंतज़ार के भाग हैं। यादों के आग़ोश में हरसू मुझे  लिपटा देख कर सवाल...हर तरफ़ से उठे चौंक कर तसव्वुर से हमने ये कह दिया बस कुछ बेचैनियों के जहनी नाग हैं। तकिये पे अश्क़ देख कर सवाल सौ उठे हंस कर हमने कह दिया अरे..ये सपनों के दाग हैं।❤️❤️
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होगी तो ज़रूर कुछ अल्फाजों की भी एहमियत वरना रद्दी तो बहुत सस्ती बिक जाती है। बेशक होगी कुछ तो एहसासों की भी फ़ितरत वरना मोहब्बत तो हर नुक्कड़ पर नज़रें मिलाती है। है ज़रूर है कुछ तो प्रीत ए रूखसार की जीनत वरना आइने में तो हर सूरत सँवर जाती है। होगी तो ज़रूर उसी इक इंतज़ार की सहमत वरना घर की दहलीज़ तो बहुत से मेहमानों से भर जाती है। होगी तो ज़रूर कुछ फूँक की भी क़ीमत वरना बाँसुरी तो बहुत सस्ती मिल जाती है।❤️❤️
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सबर् के कड़वे घूँट में जी कर ज़हर हो गया है कौन ये पी कर पल भर रूक तो मेरी तमन्ना मैं परख तो लूँ ये ज़ायक़ा पी कर। सैलाब अश्कों का दिल ए ज़मीं कर सिसक गया है कौन लबों पे हँसी ले कर इक घड़ी सँभल तो ऐ मेरी धड़कन जरा चेहरा धो लूँ अश्कों का इल्ज़ाम पानी को दे कर। ख़्वाबों की लाश सुपुर्द ए ज़मीं कर साँस लेता है कौन घुटकर गर्द होकर जरा सुनो ना तुम ऐ मेरी प्रीत मैं थोड़ा ज़िंदा कर दूँ उधार इक साँस ले कर। हसरतों का ख़ून पी कर मर गया है कौन जी कर सबर् कर कुछ तो ऐ मेरे लहू मैं देखता हूँ जरा ज़ख़्म सी कर।❤️❤️
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ताज्जुब ये नहीं कि दहलीज़ पे लगी नज़र बाक़ी है ताज्जुब तो ये है कि नाउम्मीद दस्तक के बाद भी वही इंतज़ार बाक़ी है। दर्द ये नहीं कि ज़ख़्मों का छिल कर रिसना बाक़ी है दर्द तो ये है कि अश्कों की ठीस के बाद भी होंठों पर मुसकान बाक़ी है। बेचैनी ये नहीं कि सनम की दीदार ए प्रीत बाक़ी है बेचैनी तो ये है कि मिलने के बाद भी उसकी तलब ए मोहब्बत बाक़ी है। कशिश ये नहीं कि तन्हाई भरी ये राह बाक़ी है कशिश तो ये है कि रूसवाई के बाद भी उसी की चाह बाक़ी है।❤️❤️
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निहारने को अक्स अपना जब आईना देखना पड़े तब समझ लो मेरे जाना कि......पहचान लापता ज़रूर है। अपने ही वजूद को जब रूह ए तह तलाशना पड़े तब समझना मेरे जाना कि......छाया मोहब्बत का फ़ितूर है। मर चुके से जिस्म में यूँ दिल को कुछ धड़कना पड़े तब समझना मेरे जाना कि......वही इश्क़ का ग़रूर है। सुनो ना...ये तुम ना करना कि मुझे अश्कों समन्दर ढूबना पड़े तड़प के बिखरूँ टूट कर मैं तब समझना मेरे जाना कि......यही तेरी प्रीत का सरूर है। डर लगता है जो मैंने सुना है जिन्हें बुलाना पड़े समझ लो कि......वो बहुत दूर है।❤️❤️
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मैं इक..... ज़हन में बसा ख़्वाब हूँ जिस ने...कुछ भी नहीं सोचा तेरे तसव्वुर के सिवा। मैं इक..... दर्द में लिपटा अश्क़ हूँ जिस का...कुछ भी नहीं इलाज तेरे मरहम के सिवा। मैं इक..... दिल ए बेज़ार धड़क हूँ जिस में...कुछ भी नहीं साज तेरी आवाज़ के सिवा। मैं इक..... बंजर सा सहरा हूँ जिस में...कुछ भी नहीं नमीं तेरे इश्क़ सैलाब के सिवा। मैं इक..... तन्हा सा गुम हर्फ़ हूँ जिस का...कुछ भी नहीं इख़्तियार नज़्म पर तेरी प्रीत के सिवा। मैं इक..... काग़ज़ का पन्ना हूँ जिस पर...कुछ भी नहीं लिखा तुम्हारे सिवा।❤️❤️
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कभी तो टटोल कर देखो तुम अपनी आँखों के अंधेरे कोनों में चुभेंगीं नुकीली किरचनें उन ख़्वाबों की.. जिन्हें तुम चुपचाप गला दबा कर मार देते हो। कभी जाना है तुमने कि तुम ख़ुद में खुद के लिए बाक़ी कितने हो जाओ..तालाश लो नहीं पाओगे जिस्म से रूह तक तुम खुद को ऐ प्रीत ये ज़िंदगी जो तुम दूसरों के लिए वार देते हो। कभी तो ढूँढ लाओ अपना वजूद अपनी ही तहों में पड़ा दफ़्न कहीं  साँस लेती इक लाश को पाओगे जिसे तुम ज़िंदा क़रार देते हो। कभी तो खोदकर देखो तुम अपनें जिस्म की क़ब्रें मिलें गी ख़्वाहिशें कुछ जिन्हें तुम अंदर ही मार देते हो।❤️❤️
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कुछ ख़्वाबों के पुलिंदे सबसे चुरा कर बाँध रही हूँ हो सके....तो मिलकर साथ देंखें गर इजाज़त दो। मुसकुराहटों की तहों के तले अश्कों की नमीं छुपा रही हूँ हो सके....तो सैलाब को बंजर कर दो। कुछ सासों में अटकी इंतज़ार भेज रही हूँ हो सके....तो दहलीज़ पर दस्तक कर दो। कुछ राज ए प्रीत दिल की क़ब्र में महफ़ूज़ कर रही हूँ हो सके....तो धड़कनों को फिर से ज़िंदा कर दो। कुछ ख़ामोशियाँ तुम्हें दे रही हूँ हो सके....तो शब्दों से इन्हें भर दो।❤️❤️
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गर जूनूं ए दिलबर है तो सबर् ए वफ़ा भी सीखो बस इक हासिल वो सूरत प्यारी मोहब्बत नहीं होती। गर बोया है इक बीज दिल ए ज़मीं तो हिफ़ाज़त ए वफ़ा भी सीखो ये बस ख़ुशबू तक पहरेदारी मोहब्बत नहीं होती। गर टूट कर ज्जब ए प्रीत लाज़िम होना है तो शिद्दत ए वफ़ा भी सीखो ये जिस्म से लिपटी पहरेदारी मोहब्बत नहीं होती। अगर इश्क़ करो तो आदाब ए वफ़ा भी सीखो ये चंद दिनों की बेक़रारी मोहब्बत नहीं होती।❤️❤️
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लफ़्ज़ों का हर लम्हा मेरे ज़हन में लगा रहता है इक पहरा सा जिसे सब ख़ामोशी कहें बस सुन तुम सको। हर हर्फ़ उभरता है पन्नों पे मेरे इक चेहरा सा जिसे आइने की मानिद निहारें सब उस अक्स मे बस तुम सको। मेरी नज़्मों के एहसास जब महसूस करें कुछ ठहरा सा जिसे लोग वाह वाह से नवाजें उसमें छुपी आहह!! मेरी बस समझ तुम सको। लिखना है मुझे कुछ गहरा सा जिसे कोई भी पढ़े समझ बस तुम सको।❤️❤️
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लफ़्ज़ों को तरतीब से जुड़ते देखा है कभी..... कोई ख़्वाब सलीक़े से वहाँ भी पलता है। अल्फाजों को लिखती स्याही का रंग देखा है कभी........... सुर्ख़ एहसासों का लहू बिखरा वहाँ भी मिलता है। नज़्मों में पिरोये दर्द को तड़पता देखा है कभी .... कोई ज़ख़्म हर पहलू वहाँ भी रिसता है। पन्नों पे लिखी तहरीरों को सदियों सहेजे देखा है कभी............. कोई प्रीत का इंतज़ार वहाँ भी सिसकता है। शायरी से भरे पन्नों को देखा है कभी.... कोई दिल वहाँ भी धड़कता है।❤️❤️
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बेख़बर हैं ज़िंदगी के अगले पल से साहेब अश्कों ने दामन जोड़ा है मुसकुराहटों से। बेसुध हैं अब उस आलम से साहेब सहरा को तलब हुई है बारिश की बूँदों से। अनजान बहुत हैं उस पहलू से साहेब सहर को प्रीत हुई है शब ए चाँद से। देखते हैं अब क्या मुक़ाम आता है साहेब सूखे पत्ते को इश्क़ हुआ है बहती हवा से।❤️❤️
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सिमटा अक्स हर पहलू जानते हैं मुझे लोग..... बिखरा सा वजूद हर रग मुझमें उसका भी है। अधूरा मेरा किरदार नहीं जानते हैं ये लोग........ पूरा जो करे मुझे ज़रूरत उस इन्सां की भी है। गुम हुआ सा प्रीत में मुझे मानते हैं लोग.... मिला हुआ सा मुझमें इश्क़ उसका भी है। दर्द हर लफ़्ज़ मेरी नज़्म यूँ समझते हैं  लोग..... मरहम बन मेरे अल्फाजों पे लिपटा हुआ कोई और भी है। सुलझा हुआ सा समझते हैं मुझको लोग.............. उलझा हुआ सा मुझमें कोई दूसरा भी है।❤️❤️
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ज़िक्र तो ख़्वाहिश ए रूबरू हुईं थी तुम तो....... शामिल हो गये मुझमें। बात तो हिजर् को फ़ना करने की हुई थी तुम तो....... अक्स ए तह मिल गये मुझमें। बात तो दीदार ए इश्क़ की हुई थी तुम तो....... जज़्ब ए दिल हो गये प्रीत में। बात तो मिलने की हुई थी तुम तो....... घुल गये मुझमें।❤️❤️
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कोई आँखों में पिंजरा भी नहीं फिर भी ख़्वाबों की गिरफ़्तार हूँ तुझ में। कोई अक्स पे पहरा भी नहीं फिर भी रूह ए तलब ज्जब हूँ तुझ में। कोई प्रीत की रीत भी नहीं फिर भी इश्क़बंदी मेरी मोहब्बत तुझ में। कोई धड़कनों का म्यार भी नहीं फिर भी तह ए दिल दफ़्न हूँ तुझ में। कोई दीवार भी नहीं फिर भी क़ैद हूँ तुझ में।❤️❤️
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हज़ारों सवाल ज़हन में लिए वो बेहद सिसकता ही रहा वो आइने में खड़ा शख़्स अपनी हालत पे हैरान बहुत था। तन्हाई को अपने बदन पे लपेट वो कुछ तलाशता ही रहा वो आइने में नज़र आता अक्स किसी से इक मुलाक़ात को बेचैन बहुत था। मुट्ठी में भरी यादें लेकर वो मुझे हर लम्हे की दास्ताँ पूछता ही रहा वो आइने में खड़ा शख़्स ख़ुद से बिछड़ा सा अनजान बहुत था। इश्क़ से भरा दिल लेकर वो धड़कनों के दर्द से झूझता रहा वो आइने में नज़र आता अक्स मोहब्बत के आलम से पशेमां बहुत था। पानी से भरी आँखें लेकर वो मुझे घूरता ही रहा वो आइने में खड़ा शख़्स परेशान बहुत था।❤️❤️
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जिसके लिए जीयें उसी पे जब मरने लगें उसे उसूल ए ज़िंदगी में साँसों सा क़रीब कहते हैं। जिसके हर लफ़्ज़ पे तवज्जो दें महफ़ूज़ करने लगें वो बेशक ना हो लिखा लकीरों में दिल की हथेली का वही नसीब होते हैं। जिसके अक्स को ओढ़ें तो बदन से उसी की पहचान लगें जिसकी रूह में बस कर , मरके भी क़यामत तक जिंदा रहें उसे प्रेम ग्रंथ में प्रीत ए हबीब कहते हैं। जिस शख़्स की ग़लती ग़लती ना लगे किताब ए इश्क़ में उसे महबूब कहते हैं।❤️❤️
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किसको सुनायें जो जाने दर्द लफ़्ज़ों दरार के कोई वाक़िफ़ ही नहीं बिखरते अल्फाजों से रंगीन तहरीरों के सिवा। किसको वास्ता है जो समझे टूटते ग़ज़ल म्यार के कोई ढूबता नहीं ढूँढने मोती समन्दर ए कलेजे अब चमकते पत्थरों के सिवा। किसको है तमन्ना कि जाने सिसकते दर्द प्यार के कोई करता ही नहीं टूट कर प्रीत अब दिलल्गी सहारों के सिवा। किसको फ़ुरसत है कि समझे मायने अशआर के कोई कुछ पढ़ता नहीं अब इश्तिहारों के सिवा।❤️❤️
जैसे ज़हन में इक ख़याल रूक गया जैसे नींद में वही ख़्वाब छुप गया ऐसे गुज़रा साल ...मुझमें कहीं रह गया। जैसे पलकों की मुस्कुराहट में वो अश्क़ रूक गया जैसे गहरी साँसों में वही एहसास छुप गया ऐसे गुज़रा साल ...मुझमें कहीं रह गया। जैसे तसव्वुर में बन वही अक्स रह गया जैसे नज़रों से हट वो रूह में उतर गया ऐसे गुज़रा साल...मुझमें कहीं रह गया। जैसे पन्नों पे बिखरे लफ़्ज़ों में छुप गया जैसे मेरी तस्वीरों के रंगों में दबा रह गया ऐसे गुज़रा साल...मुझमें कहीं रह गया। जैसे मेरी दुआओं में उसी फ़िक्र सा रह गया जैसे प्रीत इबादत में वही खुदा बन रह गया ऐसे गुज़रा साल...मुझमें कहीं रह गया। जैसे दहलीज़ पे दस्तक सा मेरा इंतज़ार बन रह गया जैसे मेरी मोहब्बत का वो इश्क़ जो कल था वही आज भी रह गया ऐसे गुज़रा साल...मुझमें जा कर भी ठहर गया। ऐसे नये साल में मेरा गुज़रा साल घुल गया।❤️❤️ नया साल मुबारक सबको😊