मैं इक.....
ज़हन में बसा ख़्वाब हूँ
जिस ने...कुछ भी नहीं सोचा
तेरे तसव्वुर के सिवा।
मैं इक.....
दर्द में लिपटा अश्क़ हूँ
जिस का...कुछ भी नहीं इलाज
तेरे मरहम के सिवा।
मैं इक.....
दिल ए बेज़ार धड़क हूँ
जिस में...कुछ भी नहीं साज
तेरी आवाज़ के सिवा।
मैं इक.....
बंजर सा सहरा हूँ
जिस में...कुछ भी नहीं नमीं
तेरे इश्क़ सैलाब के सिवा।
मैं इक.....
तन्हा सा गुम हर्फ़ हूँ
जिस का...कुछ भी नहीं इख़्तियार
नज़्म पर
तेरी प्रीत के सिवा।
मैं इक.....
काग़ज़ का पन्ना हूँ
जिस पर...कुछ भी नहीं लिखा
तुम्हारे सिवा।❤️❤️

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