कोई सलीक़ा
नहीं होता
ख़्वाबों की ताबीर में
फिर भी मायूस
मन को
इक उम्मीद
बँधा देता है।
कोई ज़ायक़ा
नहीं होता
लफ़्ज़ों की उसरत में
फिर भी बेचैन
रूहों में इक सुकूं
उतार देता है।
कोई पहचान
नहीं होती
यादों की जात में
फिर भी झोंका उसके
तसव्वुर का
भरी महफ़िल में
तन्हा करा देता है।
कोई रंग
नहीं होता
बारिश के पानी का
फिर भी फ़िज़ा को
रंगीन बना देता है।❤️❤️
नहीं होता
ख़्वाबों की ताबीर में
फिर भी मायूस
मन को
इक उम्मीद
बँधा देता है।
कोई ज़ायक़ा
नहीं होता
लफ़्ज़ों की उसरत में
फिर भी बेचैन
रूहों में इक सुकूं
उतार देता है।
कोई पहचान
नहीं होती
यादों की जात में
फिर भी झोंका उसके
तसव्वुर का
भरी महफ़िल में
तन्हा करा देता है।
कोई रंग
नहीं होता
बारिश के पानी का
फिर भी फ़िज़ा को
रंगीन बना देता है।❤️❤️
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