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Showing posts from December, 2019
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ख़याल बदले मजाल बदले पर तुम अपने ज़हन से मेरी तस्वीर ना बदलना तुम तसव्वुर में हो मेरे ही रूबरू रहना। फ़िज़ा बदले गिजा बदले पर तुम अपने इश्क़ का ज़ायक़ा ना बदलना तुम जुबां पे हो मेरी ही आवाज़ में रहना। नज़्म बदले ग़ज़ल बदले पर तुम मेरे अल्फ़ाज़ों की तासीर ना बदलना तुम्हीं मेरी तहरीर हो मेरे ही लफ़्ज़ों मे शामिल रहना। उम्र बदले अक्स बदले पर तुम कभी अपनी प्रीत ना बदलना तुम मेरा इश्क़ हो मेरी ही मोहब्बत रहना। साल चाहे जितने भी बदलें पर तुम कभी मत बदलना तुम मेरे हो .......बस... मेरे ही रहना।❤️❤️
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मुस्कुराने का सच सबका जुदा होता है कोई ख़ुशी में हंस दे किसी के अश्कों पर मुस्कुराहट का पैबंद होता है। टूटी ख़्वाहिशों का ग़म हर किसी का नसीब होता है कहीं तंग लाचार तो कहीं प्रीत ओ प्यार का ग़म होता है। कोई भीड़ में भी तन्हा तड़पता है कोई तन्हाई में इक शख़्स से गुफ़्तगू को तरसता है अजीब सा आलम है इस दुनिया का ऐ खुदा कोई तुझे पाने को कसकता है कोई तेरे वजूद पे ही सवाल करता है। किसी किसी में नहीं हर किसी में होता है एक दर्द सबकी ख़ामोशी में होता है।❤️❤️
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तू मेरा एहसास है मेरे दामन में लिपटा  मेरे वजूद की आयत है ये दुनिया है धड़कनों की यहाँ दिल को तोड़ना मना है। तू मेरे वजूद में है मेरे जिस्म की इनायत है ये गहराई है रूहानी चाहत की यहाँ प्रीत को भूल जाना मना है। तू मेरी नज़्मों में है मेरे अल्फ़ाज़ों की दुआ ए शिद्दत है ये विसात है दर्द ए उल्फ़त की यहाँ ख़ुद के लिए जीना मना है। तू मेरे रूबरू है मेरी आँखों की इबादत है ये ज़मीं है मोहब्बत की यहाँ ख़ता करना मना है।❤️❤️
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तेरे हिजर् में ख़ामोशियों को यूँ सुना जैसे इंतज़ार की दस्तक पे मेरे दिल का धड़कना उस पल ठहर गया। रूबरू पा के तुझे कड़क सर्द फ़िज़ा में जैसे तपते सहरा की गरम हवाओं से प्रीत का बदन जलती लौ सा सहर गया। तेरी छुअन से हर एहसास का पिघल कर तुझमें जज़्ब होना जैसे मेरे वजूद का निशाँ तेरे अक्स में जैसे गहर गया। उस वक़्त जब रवि चाँद में बदला जैसे तुझसे बिछडते मेरी ज़िंदगी का हर लम्हा मुझमें जैसे ज़हर गया। तेरे जाते ही ये आलम है जैसे तुझे देखे हुए सनम ज़माना गुज़र गया।❤️❤️
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छुपी आँखों की चिलमन में ही कहीं नींद की तू तलब ना कर शामिल तेरे हर ख़्वाब तलक बस जरा शब ए आस का ..........सफ़र तो कर। मौजूद तेरे हर तसव्वुर ए एहसास में खाव्हिशे रूबरू ना कर जज़्ब यूँ तेरे अक्स ओ रूह में इक जरा मेरे जिस्म का ..........सफ़र तो कर। दफ़्न मैं हर राज ए दिल तू कुरेद क़ब्र पोशिदा ना कर मैं हू तेरी हक़ीक़त ए जाँ  तक आ जरा हर राज का  ..........सफ़र तो कर। समाई तुझमें तुम होकर बाहर कहीं मुझे तालाश ना कर इख़्तियार सिर्फ़ तेरा मेरे इश्क़ ओ प्रीत तक आ मेरे जूनूं का ..........सफ़र तो कर। वजूद की तलब ना कर हक़ है तेरा मेरी रूह तक  ..........सफ़र तो कर।❤️❤️
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फिर दिल ने तेरी जुस्तजू की हर धड़कन तुझी से प्यार किया बस यूँ ही हर इल्ज़ाम को हमने अपने सिरनाम हर बार किया। फिर अपनी नग्न मोहब्बत को तेरे इश्क़ ए लिबास तैयार किया मेरे अक्स में भी तू नज़र आए हमने बस यही जुर्म हर बार किया। तू नहीं है मंज़िल फिर रास्ता इक तुझ तक लंबा स्वीकार किया चाहत प्रीत ए रूह की बस...तू ही हमने हर लम्हा फिर तुझसे ही इकरार किया। फिर तेरी आरज़ू की फिर तेरा इंतज़ार किया बस...यही इक गुनाह हमने बार-बार किया।❤️❤️
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क़बूल है वो मेरे दिल को तो ज़माने की और ख़्वाहिशें क्या हैं इक रोज़ तो हिजर् ए फ़ना होना है फिर किसी की साज़िशें क्या हैं? मैं जज़्ब उसके जिस्म ओ रूह में हूँ तो मोहब्बत की नुमाइशें क्या हैं टूट कर इक रोज़ उसी में बिखर जाना है फिर और मेरी फरमाईशें क्या हैं? मेरी सासों का लिबास उसे कर दूँ तो तड़प की और बारिशें क्या हैं प्रीत को तो इश्क़ ए अक्स में ढल जाना है फिर उठे सवालों की रिहाईशें क्या हैं? मिली हैं रूहें तो रस्मों की बंदिशें क्या हैं यह जिस्म तो इक रोज़ ख़ाक हो जाना है फिर रंजिशें क्या हैं?❤️❤️
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ज़िंदगी ने मुझे इक रोज़ अता किया मुस्कुराती  क़िस्मत इश्क़ ए लकीर के बिना मैंने हाथ झटक लिया कि मुझे तक़दीर में चाहत उसी की है। मुझे पेश हुई मंज़िल ए हसरत मगर उसके साथ बिना मैं दुसरी राह मुड़ चला कि मुझे मंज़िल की नहीं तालाश ए हमसफ़र उसी की है। मेरे दिल को भी इक फ़रमान हुआ धड़कना लाज़िमी है मगर उसके नाम बिना मैंने जीने से तौबा कर ली कि मेरे दिल की धड़कनों को ख़्वाहिश ए प्रीत उसी की है। मुझे हुक्म हुआ कुछ और माँगूँ मगर उसके सिवा मैं दस्त ए दुआ से उठ गया कि मुझे जुस्तजू उसी की है।❤️❤️
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जिन रस्मों के दायरों में बाँधती है दुनिया मुझे बहुत बार प्रीत के एहसास इन रस्मों रिवाजों को तोड़ लाँघते हैं वहाँ से। जिन ख़्वाबों की ताबीर ए मोहलत नहीं है मुझे उसे सोच हर बार  ख़्वाब मेरी पलकों की चिलमन मे खिलने लगते हैं वहाँ से। लोग कहते हैं ये शैय् ए मोहब्बत रास नहीं मुझे पर ये सच है ऐ सनम! तेरे ज़िक्र से मेरे जज़्बात हर बार इश्क़ को छूकर आते हैं वहाँ से। जिस राह से गुज़रने की इजाज़त नहीं मुझे कई बार गुज़रते हैं मेरे ख़याल वहाँ से।❤️❤️
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यूँ तो हर एहसास अपने ज़हन की गिरफ़्त में किया मैंने फिर भी जितना तुझे महसूस किया उतना नहीं क़ैद किया मैंने । यूँ तो अपने अक्स में लपेट लिया तेरे वजूद को मैंने मगर उतना नहीं समेटा जितना जज़्ब किया तुझे अपनी रूह में मैंने। यूँ तो अपनी धड़कनों को इक साज दिया मैंने फिर भी उतना नहीं गुनगुनाई धड़कनें जितना हर धड़क तुम्हें ख़ुद में जी लिया मैंने। यूँ तो लिखने के लिए क्या नहीं लिखा मैंने फिर भी जितना तुझे चाहा वो नहीं लिखा मैंने।❤️❤️
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वो मेरी तलब में मेरी जानिब मुड़ आया जिसे सफ़र करना गवारा ना था मैंने भी राह वो चुनी जिसपे उसका घर था हमारा ना था। वो मेरे दिल में बसता चला गया जिसे किसी की धड़कन बनना प्यारा  ना था मैंने भी उसी की रूह में बसेरा ढूँढा जिसकी क़िस्मत का मैं सितारा ना था। वो मेरे अक्स में ढलता चला गया जिसने कभी आईना भी निहारा ना था मैंने भी ख़ुद पर उसे यूँ ओढ़ लिया जैसे मेरी रूह का कोई सहारा ना था। वो मेरे इश्क़ में ढूब गया जिसे तैरना भी गवारा ना था मैंने भी तो मोहब्बत की जिसपे हक़ हमारा ना था।❤️❤️
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मैं गुम होकर ख़यालों में लिखूँ या समझ कर हर बार बस ज़रा सा बता तू मन में सोच रखूँ या पन्नों पे लिखूँ इज़हार ए प्यार । मैं ख़्वाबों के आसमां पे लिखूँ या तसव्वुर की ज़मीं का म्यार सुन ! तू कहे तो तेरे बदन पे लिखूँ अपनी उँगलियों से उकेरा प्यार । मैं सहर के सूरज पे लिखूँ या शब ए चाँद पे दिलकश शरेआर ऐ सनम !जरा तू अपनी प्रीत को बता बिना लफ़्ज़ों के लिखूँ क्या तेरे लिए ख़ामोश प्यार । मैं विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की कोई झंकार तू ही बता कैसे लिखूँ थोड़े शब्दों में बहुत सारा प्यार ।❤️❤️
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मेरी हर सोच में ज़हन में हर लम्हा जो ज़िक्र ए फ़रियाद रहे कहो कैसे ना करें फ़िकर् उसका जो हर ख़्याल ए क़ैद  में भी आज़ाद रहे। मौजूद मेरे हर लफ़्ज़ में अल्फ़ाज़ में मेरी ग़ज़लों और नज़्मों में बन के वो दाद रहे बोलो कैसे ना गुनगुनाऊँ उसे जो हर गीत में मेरे शाजाद रहे। कुछ तसव्वुर में कुछ मुझमें कुछ मेरे अक्स ओ रूह में नौशाद रहे कहो ना प्रीत कैसे आइने में ख़ुद को पायें जब वो ही मेरे बदन में ख़ुशबू ओ सवाद रहे। कुछ क़िस्से दिल में कुछ काग़ज़ों पर आबाद रहे बताओ कैसे भूलें उसे जो हर साँस में मुझे याद रहे।❤️❤️
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माना कि बचपन की सुनी कहानियाँ झूठी थीं परियों की वो आस अधूरी थी मगर ज़िंदगी के कड़वे सच के लिए कुछ मिठास माँ के क़िस्सों की भी ज़रूरी थी। जानते हैं कि सुख के लम्हे कुछ कम हैं और ख़ुशी के पल कुछ भीगे भीगे से पर कुछ अपनो की तसल्ली के लिए थोड़ा मुस्कुराना भी ज़रूरी है। ख़बर है हमको भी कि इश्क़ की मंज़िल ही नहीं और महबूब के साथ की तमन्ना अधूरी है पर प्रीत के धड़कते एहसास के लिए मोहब्बत को ज़िंदा रखना भी ज़रूरी है। मालूम है कि ख़्वाब झूठे हैं और ख़्वाहिशें भी अधूरी हैं पर ज़िंदा रहने के लिए कुछ ग़लतफ़हमियाँ भी ज़रूरी हैं।❤️❤️
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ज़िंदगी .....💓 दर्दों का ही आलम नहीं होना चाहिये गर इक ढूबा हो अश्क़ ओ समंदर में तो दूसरे को मरहम ए साथ की मुसकान देनी चाहिये। एहसास.....💖 नाज़ुक हैं बहुत टूटनें से इनकी हिफ़ाज़त होनी चाहिये गर इक ज़रा बेपरवाह हो तो दूसरे को सहेज कर महफ़ूज़ कर लेने चाहिये। मोहब्बत .....💞 रूह में बसी इबादत होनी चाहिये गर ज़िंदगी लिखी हो हिजर् की स्याही से तो इक दूसरे की प्रीत दिल में दबा आख़री साँस तलक मुकम्मल करनी चाहिये। रिश्ते .....💝 ख़ामोश नहीं होने चाहिये गर इक चुप हो तो दूसरे को आवाज़ देनी चाहिये।❤️❤️
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रूबरू तेरे अक्स को कोई भी निहारेगा मगर वो तसव्वुर में बसे तेरे वजूद को बेइंतहा कैसे चाहेगा। ज़िंदगी में क़िस्मत से कोई भी दर्ज हो कर तेरा हाथ थाम पायेगा बिन जुड़े तेरी लकीरों से कौन ता उम्र साथ निभायेगा। हर रिश्ता इक नाम से तुझ संग तेरा हो जायेगा बिन नाते कौन तेरी प्रीत की रीत निभायेगा। कर लो जाओ तालाश इक ज़िंदगी बसर किसी में थक जाओगे तरस जाओगे हम सी मोहब्बत तुम्हें कोई भी कर ना पायेगा।❤️❤️
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उलझी सी मेरी सहर शब भी गुम सी हर पहर सोचा इक पल जो ठहर मुझे हर वक़्त हर लम्हा दुसरा और ख़्याल ही क्या आया........तेरे सिवा। परेशानी में सहमा दर्द में करहाया धड़का ज़ोर से जब भी तेरा जो ज़िक्र आया प्रीत की धड़कनों में कोई और कहाँ बस पाया......तेरे सिवा। दहलीज़ पे दस्तक शायद दरवाज़ा किसी झोंके ने है हिलाया इंतज़ार ने दूर तलक रास्ता निहारा मेहमां आते हैं घर में यूँ तो मेरे इंतज़ार की तलब कौन भर पाया........तेरे सिवा। मैंने चाहा ही क्या तुमसे इक....................तेरे सिवा।❤️❤️
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आँखें भी बंजर थीं खाव्हिशें भी सहरा सी बस,  फिर तुम मिले और हर ख़्वाब मस्ताना हो गया। धड़कनें भी बेसुर थीं जान भी बेज़ार थी बस ,तुम समाये मुझमें और मेरा दिल गुनगुनाता हो गया। नज़्में बेअसर थीं ग़ज़लें भी आवारा सी बस , हर लफ़्ज़ तुमसे जुड़ा और मेरे अल्फ़ाज़ शायराना हो गया। चाहते बेक़सूर थीं मोहब्बतें बेबस थीं बस , तुमपे जो हुए फ़िदा और प्रीत का हर एहसास रूमाया हो गया। मंज़र भी बेनूर थे फ़िज़ाएँ भी बेरंग थीं बस , तुम याद आए और मौसम सुहाना हो गया।❤️❤️
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हाल ए दिल समझायें क्या गर लफ़्ज़ों को पढ़ने की सवाल ना हो। सब शायरी बेकार है गर समझ लफ़्ज़ों की गहराई की ना हो। ना समझे नज़रिया कोई ग़म नहीं गर कोई किसीका दिलदार ना हो। अब क्या सुनायें दर्द ए मोहब्बत गर किसी को आपसे प्यार ना हो। ना गुनगुना पायें कोई ग़म नहीं गर सुर की सही पहचान ना हो। प्रीत के नगमें बेमक़सद हैं जानम गर इश्क़ रूह में बस पाया ना हो। दूरियों का कोई ग़म नहीं गर फ़ासले दिल में ना हों नज़दीकियाँ बेकार हैं गर जगह दिल में ना हो।❤️❤️
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लफ़्ज़ों में लिख ना सकूँ आवाज़ में कह ना सकूँ तेरे ज़िक्र का.......सुकूं । मेरे तसव्वुर के दायरे तुम तक मेरी प्रीत की हद का हकदार ....सुकूं । मेरी जुस्तजू मेरी कशिश वही इक ख़्वाहिश का.........सुकूं । इक लम्बा रास्ता मुझसे तुम तक इक पुल उम्मीद का तुम तक पहुँचने का...सुकूं । लिखा है तुम्हें खुदा ने ख़ुद मेरी लकीरों में तुम बस मेरे हो इसी यक़ीं का ..........सुकूं । ब्यां से परे है तेरे ख़्याल का..........सुकूं ।❤️❤️
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मुनासिब कहाँ है कि तुझे रूबरू देखूँ तसव्वुर में तुझसे मुलाक़ात किसी जॉनिसार से कम नहीं। ज़रूरी तो है कि मैं रस्मों के दायरे देखूँ तेरे जानिब प्रीत का यूँ खिच जाना किसी प्यार से कम नहीं। मुश्किल तो है बिन धड़कनों दिल का धड़कना बिन साँसों जी जाना इक ज़रा उसे सोच कर उसकी रूह में घुल जाना किसी इकरार से कम नहीं। लाज़मी तो नहीं कि तुझे आँखों से ही देखूँ तेरी याद का आना भी तेरे दीदार से कम नहीं।❤️❤️
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तसव्वुर मे बसती हैं कभी रूबरू हो जाती हैं कुछ यादें कल की जो बहुत आज सी हैं। इक ठीस दर्द की जिस्म से रूह तलक आइने में दर्ज तो मुसकुराहटें साज सी हैं। ज़रा पलट तुम मुझे इक नज़र ज़िंदा करना प्रीत में हरकत तो है धड़कनें नाराज़ सी हैं। ना करो जिद्द मुझसे तुम मुलाक़ात की लफ़्ज़ों की तालाश में ख़ामोशी ही आवाज़ सी हैं। ज़रा कोई पढ़ दो मेरे हक़ में इक दुआ आज तबीयत मेरी थोड़ी नासाज़ सी है।❤️❤️
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कोई सलीक़ा नहीं होता ख़्वाबों की ताबीर में फिर भी मायूस मन को इक उम्मीद बँधा देता है। कोई ज़ायक़ा नहीं होता लफ़्ज़ों की उसरत में फिर भी बेचैन रूहों में इक सुकूं उतार देता है। कोई पहचान नहीं होती यादों की जात में फिर भी झोंका उसके तसव्वुर का भरी महफ़िल में तन्हा करा देता है। कोई रंग नहीं होता बारिश के पानी का फिर भी फ़िज़ा को रंगीन बना देता है।❤️❤️
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कुछ पथरीले टेढ़े मेढ़े रास्तों पर लग जाती है अकसर ठोकर गिर ना जाऊँ कही मुझे संभालने तुम आना। क़ायम तो रहती हैं प्रीत के लबों पे मुसकुराहटें यूँ ही दबे अश्कों के सैलाब में ढूब जाने से बचाने तुम आना। इक सफ़र रूहानियत का आँखों से रूह तलक इस तलब ए हसरत को मेरे अक्स ओ रूह तक महफ़ूज़ करने तुम आना। इश्क़ के स्टेशन से इक ट्रेन गुज़रती है हर रोज़ एक सीट रोक रखी है तुम आना।❤️❤️
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बस इतना सा असर होगा मेरे अल्फाजों का कि जब भी ग़ौर से पढ़ोगे तो तो ख़ुद को हर लफ़्ज़ मे पाओगे। बस इतना सा असर होगा मेरे वजूद का जब भी ज़िक्र प्रीत का कहीं होगा तो मेरा ही चेहरा तसव्वुर में लाओगे। बस इतना सा असर होगा मेरी मुस्कुराहट का कि जब कभी दर्द में होगे तो मुझे याद कर भरी आँखों से मुसकुराओगे। बस इतना सा असर होगा हमारी यादों का कि कभी कभी तुम बिना बात मुसकुराओगे।❤️❤️
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मिज़ाज अपनी तासीर का ज़रा तो बदल के देख तू इश्क़ का साहिल ना तालाश इश्क़ में ज़रा ढूब कर तो देख। लुत्फ़ आज़माने का ज़रा छोड़ कर तो देख तू एतबार करा कर नहीं एतबार करके तो देख। एहसासों के लंबे रास्तों और खोई मंज़िल को ना देख तू प्रीत की शिद्दत नहीं शिद्दत ए प्रीत देख। शब्दों के इतेफाक में यूँ बदलाव करके तो देख तू देख कर ना मुस्कुरा ज़रा मुस्कुरा के तो देख।❤️❤️