जिन रस्मों के
दायरों में बाँधती है
दुनिया मुझे
बहुत बार प्रीत के
एहसास इन
रस्मों रिवाजों को
तोड़ लाँघते हैं वहाँ से।

जिन ख़्वाबों की
ताबीर ए मोहलत
नहीं है मुझे
उसे सोच हर बार
 ख़्वाब मेरी पलकों की
चिलमन मे खिलने
लगते हैं वहाँ से।

लोग कहते हैं
ये शैय् ए मोहब्बत
रास नहीं मुझे
पर ये सच है
ऐ सनम! तेरे ज़िक्र से
मेरे जज़्बात हर बार
इश्क़ को छूकर
आते हैं वहाँ से।

जिस राह से
गुज़रने की इजाज़त
नहीं मुझे
कई बार गुज़रते हैं
मेरे ख़याल
वहाँ से।❤️❤️

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