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Showing posts from November, 2019
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कुछ इस क़दर मैं अपना किरदार सादा रखती हूँ लोग संवरते हैं आइने के रूबरू मैं ख़ुद में इक आइना रखती हूँ । शिद्दत से निभाने का इक वादा रखती हूँ लोगों के बसेरे हैं इन घरों में मैं बसेरा रूह की गहराइयों में रखती हूँ । खुद्दार अक्स में मैं ज़िंदगी का क़ायदा रखती हूँ लोग तलाशते हैं इश्क़ दिलों में मैं तो अपने वजूद को ही प्रीत रखती हूँ । फ़क़ीर मिज़ाज हूँ मैं अपना अंदाज़ जुदा रखती हूँ लोग मस्जिदों में जाते हैं मैं अपने दिल में खुदा रखती हूँ ।❤️❤️
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जिसके हिस्से में ख़्वाब आए हैं यक़ीनन उसके हिस्से में नींद का कारवाँ होगा। जिसके हिस्से मे दर्द का हो मुजसमां यक़ीनन उसके हिस्से में इश्क़ तो धड़कता होगा। जिसके हिस्से में हो एहसास ए वफ़ा यक़ीनन उसकी रूह का हिस्सा प्रीत से जुड़ा होगा। जिसके हिस्से में इंतज़ार तलब हो यक़ीनन उसके हिस्से में दीदार ए सनम ज़रूर होगा। जिसके हिस्से में रात आई है यक़ीनन उसके हिस्से में चाँद भी होगा।❤️❤️
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किरदार......चाहे                 बिंदास हो                 ख़ास हो                  रास हो शर्त बस ये कि बेनक़ाब हो सच हो। फ़ितरत .......चाहे                   कम्बख़्त हो                    जबरख्त हो                    सख़्त हो शर्त बस ये कि पाकीज़ा हो सच हो। रूखसार पे.......चाहे                     नूर हो                     सुरूर हो                      ग़ुरूर हो शर्त बस ये कि ख़ुद्दारी हो सच हो। रूहानियत........चाहे                       प्रीत हो                        रीत हो                        मनमीत हो शर्त बस ये कि शिद्दत हो सच हो। दरमियाँ ............चाहे                         इश्क़ हो                         अश्क़ हो                         रश्क हो शर्त बस ये कि जो भी हो सच हो।❤️❤️            
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शिद्दत से  उतरेंगे तेरी रूह में बस जायेंगे ये तो ग़लत सुना था कि बसेरे सिर्फ़ घरों में होते हैं हम तो तेरी साँसों में बस जायेंगे। वो ख़याल हैं हम जो नींद खुलने पर भी आयेंगे झूठ तो ये भी था कि सपने नींद में ही आते हैं हम हर लम्हा तेरी सोच पे छा जायेंगे। दिल के इक कोने में छुपा कर रख देने वाली कोई मीठी याद नहीं हैं साहिब सच तो ये है कि ......तेरी जान बन जायेंगे फिर कहोगे तुम....... तेरे बिना भी मर जायेंगे तेरे लिए भी मर जायेंगे। ना जाने कितनी अनकही बातें साथ ले जायेंगे लोग झूठ कहते हैं कि ख़ाली हाथ आए थे और ख़ाली हाथ जायेंगे।❤️❤️
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खुशफहमियां रखते हैं अपने दिल में इसमें हर्जा क्या है हर टूटी उम्मीद पे बिखर जायें....तो मज़ा क्या है। मोहब्बत के सिवा सनम की और गजा क्या है प्रीत हो तुम्हीं से मुकम्मल ये बताना पड़े .....तो मज़ा क्या है। प्यार जितना भी हो दिलकश पर इससे बड़ी और सज़ा क्या है हर पल उसी पे मरना और उसी के लिए जीना इसके सिवा इश्क़ में.....मज़ा क्या है। आँखें पढ़ो और जानो हमारी रजा क्या है हर बात लफ़्ज़ों से हो जानम.......तो मज़ा क्या है।❤️❤️
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यादों का बरसना भी ज़रूरी है जुदाई में ज़िंदा रहने को इंतज़ार की बंजर तो फ़ना कर जाती है। मोहब्बत को नश्तर सा चुभना भी है लाज़मी प्रीत फूलों सी रहे नाज़ुक तो मुरझा कर सूख जाती है। सहारा की कड़ी धूप सी भी ज़रूरी है ज़िंदगी को सोने सा निखरने के लिए ठंडक देर तलक तो सांसें थम ही जाती हैं। एहसासों की नमी भी होना ज़रूरी है हर रिश्ते में रेत सूखी हो तो हाथों से फिसल जाती है।❤️❤️
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लबों पर रह गया कुछ अनकहा करार का कुछ यूँ समेट लिया हमने वो वादा इंकार का। इक जूनून पार नदी ले जाए प्यार का कच्चे घड़े पे भी लगा दे दाँव जान ओ म्यार का। इक ज़रा सी ख़लिश पे ना तोड़ दिल यार का प्रीत को रख थाम महफ़ूज़ दामन बहार का। पलकों पर रूक गया समंदर ख़ुमार का कितना अजब नशा है तेरे इंतज़ार का।❤️❤️
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हर वक़्त हो पाये गुफ़्तगू ये ना सोचिये इशारों में भी होती हैं बातें ज़रा तो.....सुना कीजिये । हर बार हो दीदार रूबरू ये मुमकिन तो नहीं बेहतर तो ये है कि यादों में इक मुलाक़ात कीजिये। गिला सनम की किसी इक बात का यूँ ना दिल को लगाइये अच्छा तो ये है कि प्रीत में लिपटे उसके हर लफ़्ज़ को याद कीजिये । इक रवैया ज़रा तल्ख़ लगा जो उसका दरूसत तो ये है कि उसका हर रूमानी लहजा ज़रा रोमांच कीजिये। रिश्ता क्या है ये जानने से अच्छा अपनापन कितना है ये महसूस कीजिये।❤️❤️
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उलझे सिरे ज़िंदगी के तुम्हारे भी हैं उलझी सी गाँठों में उलझे हम भी हैं सुलझायें कैसे उलझने बेशुमार बहुत हैं। बेबसी तेरी भी बेबस कुछ हम भी हैं मजबूर दोंनो इस क़दर ग़लतफ़हमियाँ  ज़हन में उभरी तो बहुत हैं। नाकाम गर तुम हो लिपटे नाकामियों में हम भी हैं मुस्कुराते हैं लब प्रीत के मगर सच तो ये है कि दर्दों के अश्क़ बहुत हैं। तुम्हारे पास भी कम नहीं मेरे पास भी बहुत हैं ये परेशानियाँ आजकल फ़ुरसत में बहुत हैं।❤️❤️
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शिद्दत से उतरा मेरी रूह में अक्स उसका आइने में पूरा तो है मगर... फिर भी अधूरा लगता है। बेइंतहा मोहब्बत की हदें तय करते हैं दायरे रस्मों के हर बंदिश तोड़ मिल जाने से भी मिलन का एहसास अधूरा लगता है। सांसे तेज़ ,धड़कनें तेज़ कुछ इस क़दर तेज़ प्रीत ए जज़्ब में मैं लिख तो दूँ तेरा नाम पूरा ना जाने.....फिर भी अधूरा क्यों लगता है। तलब में शुमार इस क़दर दीदार उनका सौ बार भी मिल जाये मगर......अधूरा लगता है।❤️❤️
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पलकों की चिलमन में बेहद गहरी आँखों में जब इक ख़्वाब आया हुबहू तुम सा था मेरी रूह से लिपटा वो तेरे अक्स का साया। उलझनें बेहिसाब ज़हन में इस क़दर हर दफ़ा कहें तो फ़ुर्सत नहीं फिर भी मसरूफ से हरपल में आया वो ख़याल तेरा जो मुझे हर लम्हा उलझे हुए भी आया। बेकरारियां धड़कनों में बेहिसाब धड़कती रही सुकूं था तेरी प्रीत का तभी तो तुझ पे प्यार आया इश्क़ है,जूनूं है,क्या नाम है इसका हर रिश्ते से ऊपर बस तुझी से ताल्लुक़ पाया। कहानी का क़िस्सा ख़त्म होने आया यादों की चादर ओढ़कर किरदार फिर सामने आया।❤️❤️
❤️दिल से ज़्यादा मधुर सरगम नहीं है जहाँ में साज बजता है धड़कनों की धुन में मगर.....सबसे ज़्यादा ख़ामोशी के सन्नाटे यहीं परोसते हैं। ❤️दिल से ज़्यादा पोशिदा तिजोरी नहीं है दुनिया में मगर......सबसे ज़्यादा राज यहीं तो खुलते हैं। ❤️दिल से ज़्यादा प्रीत चाहत मोहब्बत कहाँ है मगर.....बेइंतहां नफ़रत यहीं तो पलती है। ❤️दिल से अपना लेने की ख़ुशी कहाँ है इस जग में मगर......दिल से उतर जाने की यहीं तो रिवायत है। ❤️दिल से ज़्यादा महफ़ूज़ जगह नहीं है दुनिया में मगर.......सबसे ज़्यादा लोग लापता भी यहीं से होते हैं।❤️❤️
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मंज़िलों को दूर तलक तलाशती नहीं हैं आँखें बस...दुशवार रास्तों पर तेरा साथ ही राहत है। हर ख़्वाब सच होने की तमन्ना करती नहीं हैं आँखें छलके ना भरा समन्दर अश्कों से मेरे ख़्वाब इस क़दर  आहत हैं। लफ़्ज़ ओढ़े है हिजाब ख़ामोशी के मगर चुप कहाँ रहती हैं आँखें बस ज़रा सा...तू रूह में उतर देख प्रीत ही तेरी तालाश ए चाहत है। मुकम्मल इश्क़ की तलबगार नहीं हैं आँखें थोड़ा -थोड़ा ही सही...... रोज़ तेरे दीदार की चाहत है।❤️❤️
दर्द की कसक कौन महसूस कर पाता है हुज़ूर इक ज़ख़्म ज़रूरी है जिस्म ओ रूह की ठीस के लिए। जुदाई में नहीं मरते किसी के ये कहने वालों को ऐ प्रीत हिजर् ए नशतर ज़रूरी है हर पल जीते जी मरने के लिए। इंतज़ार की तड़प कौन समझता है जानम इक बेचैनी ज़रूरी है हर लम्हा दहलीज़ पे इक दस्तक सुनने के लिए। सिर्फ़ बातों से कौन सीख पाया है साहिब इक हादसा सबको ज़रूरी है सीखनें के लिए।❤️❤️
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ताज्जुब इस ज़माने की चाल से नहीं इसके बदलते दौर से है। दर्द की कैफ़ियत से ख़फ़ा नहीं बेअसर दवा की ओर से है। शिकायत मुट्ठी में भरी क़िस्मत से नहीं हाथों मे बनी अधूरी लकीरों से है। नज़र तेरी हर वक़्त ना हो प्रीत पर गिला नहीं कभी ना देने वाले ज़रा से ग़ौर से है। तकलीफ़ अकेलापन से तो है ही नहीं अंदर के शोर से है।❤️❤️
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वैसे भी कुछ कहाँ कम थे दर्द ज़िंदगी बसर में      और ज़ानम सनम भी हमें इशकवालों की क़तार में खड़ा कर देता है। वैसे भी तन्हाई कहाँ कम थी मेरे अक्स ओ रूह पर         और ज़ालिम यादों का तेज़ इक झोंका हमें अक्सर महफ़िल में तन्हा कर देता है। वैसे ही कुछ कम नहीं थे बोझ दिल पर         और कमबख़्त दर्ज़ी भी जेब बायीं ओर सिल देता है।❤️❤️
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इक प्रेम है.......... जिस्म से दिल के टुकड़ों का सीने से लिपट जाएँ माथा जो चूम लें हर दर्द हो जाए दवा इक छुअन से कर दे हर बला को दफ़ा हाँ प्रेम है माँ बाप का ❤️ इक प्रेम है.......... ख़ुद से ख़ुद जैसा ख़ून का नहीं मगर साँस सा जो रोये भी रुलाये भी हँसे भी लड़ जाये भी लड़खड़ा दूँ जो कभी मैं मुझे संभाल जाये भी हाँ वो प्रेम मेरे दोस्त का❤️ इक प्रेम है.......... दिल से दिल का बसे धड़कनों में मौजूद रहे ज़हन में रूह में उतर जाये अक्स में नज़र आये हर सफ़र में दे साथ थाम कर हाथ हाँ वो प्रेम मेरे जानम मेरी प्रीत का ❤️ इक प्रेम है.......... नाता है उसका मेरी तहज़ीब से दुनिया के हर इंसा रक़ीब से ज़िंदगी के सुकूं से हर सलीब से एहसास जज़्बात परवाह के क़रीब से हाँ वो प्रेम इंसा का इंसा से इंसानियत का❤️ प्रेम तो प्रेम है किसी का भी हो किसी से भी हो.........बस प्रेम दिलों में हो❤️❤️
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मैं मंज़ूर तो नहीं हूँ कुछ रिश्तों के आग़ाज़ के लिए पर इतना यक़ीं है मुकम्मल नहीं होंगे अधूरे रिश्ते मेरे ना होने के बाद। मैं लकीर हूँ प्रीत की होती नहीं हूँ सबकी हथेलियों में मोहब्बत के लिए पर इतना यक़ीं है इक तमन्ना आह भरती है मुझे ना पाने के बाद। मैं परवाह हूँ दिल ए अज़ीज़ सी माना बेरुख़े लहजे हों कभी मेरे जानिब पर इतना यक़ीं है लाज़मी हूँ किस क़दर मेरी अहमियत खो देने के बाद।❤️❤️
दर्द को भी सुनते हैं किस क़दर लापरवाही से हर किसी से दुख बाँटना अच्छा नहीं होता। ज़ख़्म कुरेद कर जाँचते हैं असल लहू की हर किसी से दवा माँगना अच्छा नहीं होता। ख़ामोशी का ज़िक्र कैसे करें महफ़िल के शोर वालों से तन्हाई की फ़िक्र हर किसी से करना अच्छा नहीं होता। दरारें है जिस्म ओ रूह में कहां तलक ऐ प्रीत अपने टूटे होने का अंदाज़ा देना अच्छा नहीं होता। मंज़िलों से गुमराह भी कर देते हैं कुछ लोग हर किसी से रास्ता पूछना अच्छा नहीं होता।❤️❤️
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शायरी इक तजुर्बा है ज़िंदगी का जज़्बात लफ़्ज़ों के लिबास में लिपट कर उतरते हैं पन्नों पर। शायरी इक पहेली है ज़हन ओ दिल की सुराग़ छुपे रहते हैं दबे राजों पर। शायरी इक क़ब्रिस्तान है ख़्वाबों का अल्फाजों के कफ़न ओढ़े दफ़्न पड़े  मरे अरमानों पर। शायरी इक नशा भी है  प्रीत का जिसमें उन्स ए लहू की स्याही में ढूबे एहसास रोज़ लड़खड़ा गिरते हैं इसी इश्क़ की लत पर।❤️❤️
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पन्नों की ज़मीं पे उतार दें अपने लफ़्ज़ हल्की तबीयत ज़रा सी फिराकत ज़रा सी। चीख़ लेते हैं दबे घुटे अल्फ़ाज़ यहाँ बस आदत ज़रा सी राहत ज़रा सी। पिरो देते हैं नज़्मों में हर दर्द अपना यही कैफ़ियत ज़रा सी रिवायत ज़रा सी। खारी बूँदों को बिछा दें इक समन्दर की मानिद बस प्रीत इक बात ज़रा सी जज़्बाती सौग़ात ज़रा सी।❤️❤️
तोड देते हैं लम्हे वक्त भी कभी बेहद दरिंदा है अगले पल उठ अपने टुकड़ों को समेट जुड जायेगा वही जिंदा है। दर्द में लिपटे इंसां रूह से जिस्म से घायल हर बाशिंदा है अपने ज़ख्मों को ढक मुस्कान के पैबंद से दर्द से लड जायेगा वही जिंदा है। ऐ प्रीत......, घायल तो यहां हर एक परिंदा है मगर जो फिर से उड़ सखा वही जिंदा है।❤️❤️
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रख इक आस अपने पास जिंदा रख जिंदगी का एहसास इक रोज़.... अंधेरों से निकल वो सुबह..... तो आएगी। उम्मीद रख समेट अपने सिरहाने ख्वाब भी संजो ले जो हैं बेहद खास रख इंतजार....वो लाज़मी आएगी वो सुबह....तो आएगी। माना कि दर्द कुछ है बदहवास अश्कों को भी है इक मीठी प्यास लबों की फीकी मुस्कान यक़ीनन रंगीन हो जाएगी ...ऐ प्रीत वो सुबह... ज़रूर आएगी अंधेरों को चीर रोशनी के सरोश चांद को छोड़ रवि की आगोश वो सुबह....... कभी तो आएगी।❤️❤️
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तेरे अंदाज को सोच लब मुस्कुराते रहते हैं तुम मुझसे हो बावस्ता ये सोच इतराते रहते हैं। तेरे ख्वाबों को आना है आंखों में दिलकश चमक रखते हैं जब भी छू ले तेरा एहसास मुझे पलकें झुका इस्तकबाल करते हैं। तेरे इंतज़ार का तो सबब ये दिल की दहलीज पे धड़कनों को तैनात रखते हैं जब जब जिक्र हो प्रीत का कहीं उंगलियों से तेरा नाम लिखते हैं। तेरी यादों की ख़ुशबू से हम महकते रहते हैं जब जब तुझको सोचते हैं बहकते रहते हैं।❤️❤️
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कुछ ख्वाहिशों कुछ हसरतों को इक आस की दहलीज पे देखा था इक रोज़ अपनी तालाश में मैंने अपनी ही रूह में झांक के देखा था। मुस्कुराहटों को तबीयत से खुलकर लबों पे दिलकश अंदाज में देखा था अकसर पलकों की चिलमन में छुपा मैंने खुद में सिमटा इक अश्क समन्दर देखा था। इक ठीस प्रीत मोहब्बत की बड़ी एहतियात से अपनी रूह में दफ़न करते देखा था हर बार इक जिंदगी अपनी चाहत की जीने को मैंने अपने अक्स को हर हाल में मरते देखा था टूटी फूटी कश्ती और इक..खुशक समंदर देखा था कल रात शायद झांक कर मैंने अपने अंदर देखा था।❤️❤️