कुछ इस क़दर
मैं अपना किरदार
सादा रखती हूँ
लोग संवरते हैं
आइने के रूबरू
मैं ख़ुद में इक
आइना रखती हूँ ।

शिद्दत से निभाने का
इक वादा रखती हूँ
लोगों के बसेरे हैं
इन घरों में
मैं बसेरा रूह की
गहराइयों में रखती हूँ ।

खुद्दार अक्स में मैं
ज़िंदगी का क़ायदा रखती हूँ
लोग तलाशते हैं
इश्क़ दिलों में
मैं तो अपने वजूद को ही
प्रीत रखती हूँ ।

फ़क़ीर मिज़ाज हूँ
मैं अपना अंदाज़
जुदा रखती हूँ
लोग मस्जिदों में जाते हैं
मैं अपने दिल में
खुदा रखती हूँ ।❤️❤️

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