दर्द की कसक
कौन महसूस कर
पाता है हुज़ूर
इक ज़ख़्म ज़रूरी है
जिस्म ओ रूह की
ठीस के लिए।
जुदाई में नहीं मरते
किसी के ये कहने
वालों को ऐ प्रीत
हिजर् ए नशतर
ज़रूरी है हर पल
जीते जी मरने के लिए।
इंतज़ार की तड़प
कौन समझता है जानम
इक बेचैनी ज़रूरी है
हर लम्हा दहलीज़ पे
इक दस्तक सुनने के लिए।
सिर्फ़ बातों से
कौन सीख पाया है
साहिब
इक हादसा सबको ज़रूरी है
सीखनें के लिए।❤️❤️
कौन महसूस कर
पाता है हुज़ूर
इक ज़ख़्म ज़रूरी है
जिस्म ओ रूह की
ठीस के लिए।
जुदाई में नहीं मरते
किसी के ये कहने
वालों को ऐ प्रीत
हिजर् ए नशतर
ज़रूरी है हर पल
जीते जी मरने के लिए।
इंतज़ार की तड़प
कौन समझता है जानम
इक बेचैनी ज़रूरी है
हर लम्हा दहलीज़ पे
इक दस्तक सुनने के लिए।
सिर्फ़ बातों से
कौन सीख पाया है
साहिब
इक हादसा सबको ज़रूरी है
सीखनें के लिए।❤️❤️
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