कुछ ख्वाहिशों कुछ हसरतों को
इक आस की दहलीज पे देखा था
इक रोज़ अपनी तालाश में मैंने
अपनी ही रूह में झांक के देखा था।

मुस्कुराहटों को तबीयत से खुलकर
लबों पे दिलकश अंदाज में देखा था
अकसर पलकों की चिलमन में छुपा
मैंने खुद में सिमटा इक अश्क समन्दर देखा था।

इक ठीस प्रीत मोहब्बत की बड़ी एहतियात से
अपनी रूह में दफ़न करते देखा था
हर बार इक जिंदगी अपनी चाहत की जीने को
मैंने अपने अक्स को हर हाल में मरते देखा था

टूटी फूटी कश्ती और इक..खुशक समंदर देखा था
कल रात शायद झांक कर मैंने अपने अंदर देखा था।❤️❤️

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