मंज़िलों को दूर तलक
तलाशती नहीं हैं आँखें
बस...दुशवार रास्तों पर
तेरा साथ ही राहत है।

हर ख़्वाब सच होने की
तमन्ना करती नहीं हैं आँखें
छलके ना भरा समन्दर अश्कों से
मेरे ख़्वाब इस क़दर  आहत हैं।

लफ़्ज़ ओढ़े है हिजाब ख़ामोशी के
मगर चुप कहाँ रहती हैं आँखें
बस ज़रा सा...तू रूह में उतर देख
प्रीत ही तेरी तालाश ए चाहत है।

मुकम्मल इश्क़ की तलबगार
नहीं हैं आँखें
थोड़ा -थोड़ा ही सही......
रोज़ तेरे दीदार की चाहत है।❤️❤️

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