लबों पर रह गया कुछ
अनकहा करार का
कुछ यूँ समेट लिया हमने
वो वादा इंकार का।

इक जूनून पार नदी
ले जाए प्यार का
कच्चे घड़े पे भी लगा दे
दाँव जान ओ म्यार का।

इक ज़रा सी ख़लिश पे
ना तोड़ दिल यार का
प्रीत को रख थाम
महफ़ूज़ दामन बहार का।

पलकों पर रूक गया
समंदर ख़ुमार का
कितना अजब नशा है
तेरे इंतज़ार का।❤️❤️

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