वैसे भी कुछ
कहाँ कम थे
दर्द ज़िंदगी बसर में
     और
ज़ानम सनम भी हमें
इशकवालों की क़तार में
खड़ा कर देता है।

वैसे भी तन्हाई
कहाँ कम थी
मेरे अक्स ओ रूह पर
        और
ज़ालिम यादों का
तेज़ इक झोंका
हमें अक्सर महफ़िल में
तन्हा कर देता है।

वैसे ही कुछ
कम नहीं थे
बोझ दिल पर
        और
कमबख़्त दर्ज़ी भी
जेब बायीं ओर
सिल देता है।❤️❤️

Comments

Popular posts from this blog