पन्नों की ज़मीं पे
उतार दें अपने लफ़्ज़
हल्की तबीयत ज़रा सी
फिराकत ज़रा सी।

चीख़ लेते हैं दबे घुटे
अल्फ़ाज़ यहाँ बस
आदत ज़रा सी
राहत ज़रा सी।

पिरो देते हैं नज़्मों में
हर दर्द अपना
यही कैफ़ियत ज़रा सी
रिवायत ज़रा सी।

खारी बूँदों को बिछा दें
इक समन्दर की मानिद
बस प्रीत इक बात ज़रा सी
जज़्बाती सौग़ात ज़रा सी।❤️❤️

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