माना कि बचपन की
सुनी कहानियाँ झूठी थीं
परियों की वो आस
अधूरी थी
मगर ज़िंदगी के
कड़वे सच के लिए
कुछ मिठास माँ के
क़िस्सों की भी ज़रूरी थी।

जानते हैं कि सुख के
लम्हे कुछ कम हैं
और ख़ुशी के पल
कुछ भीगे भीगे से
पर कुछ अपनो की
तसल्ली के लिए
थोड़ा मुस्कुराना भी ज़रूरी है।

ख़बर है हमको भी कि
इश्क़ की मंज़िल ही नहीं
और महबूब के साथ की
तमन्ना अधूरी है
पर प्रीत के धड़कते
एहसास के लिए
मोहब्बत को ज़िंदा रखना
भी ज़रूरी है।

मालूम है कि ख़्वाब
झूठे हैं और
ख़्वाहिशें भी अधूरी हैं
पर ज़िंदा रहने के लिए
कुछ ग़लतफ़हमियाँ भी
ज़रूरी हैं।❤️❤️

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