मेरी हर सोच में
ज़हन में
हर लम्हा जो
ज़िक्र ए फ़रियाद रहे
कहो कैसे ना करें
फ़िकर् उसका
जो हर ख़्याल ए क़ैद
 में भी आज़ाद रहे।

मौजूद मेरे हर
लफ़्ज़ में अल्फ़ाज़ में
मेरी ग़ज़लों और नज़्मों में
बन के वो दाद रहे
बोलो कैसे ना गुनगुनाऊँ उसे
जो हर गीत में
मेरे शाजाद रहे।

कुछ तसव्वुर में
कुछ मुझमें
कुछ मेरे अक्स ओ रूह
में नौशाद रहे
कहो ना प्रीत कैसे
आइने में ख़ुद को पायें
जब वो ही मेरे
बदन में
ख़ुशबू ओ सवाद रहे।

कुछ क़िस्से दिल में
कुछ काग़ज़ों पर
आबाद रहे
बताओ कैसे भूलें उसे
जो हर साँस में
मुझे याद रहे।❤️❤️

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