लफ़्ज़ों में
लिख ना सकूँ
आवाज़ में
कह ना सकूँ
तेरे ज़िक्र का.......सुकूं ।
मेरे तसव्वुर के
दायरे तुम तक
मेरी प्रीत की
हद का हकदार ....सुकूं ।
मेरी जुस्तजू
मेरी कशिश
वही इक
ख़्वाहिश का.........सुकूं ।
इक लम्बा रास्ता
मुझसे तुम तक
इक पुल उम्मीद का
तुम तक पहुँचने का...सुकूं ।
लिखा है तुम्हें
खुदा ने ख़ुद
मेरी लकीरों में
तुम बस मेरे हो
इसी यक़ीं का ..........सुकूं ।
ब्यां से परे है
तेरे ख़्याल का..........सुकूं ।❤️❤️

Comments

  1. सुनते जब ऐसे दिल की पुकार
    लगता है कुछ लोग अभी जिन्दा हैं
    वर्ना तो हर तरफ,नफरत के बाजार में
    जिंदगी ढूंढते रहते हैं

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