उलझी सी मेरी सहर
शब भी गुम सी हर पहर
सोचा इक पल जो ठहर
मुझे हर वक़्त हर लम्हा
दुसरा और ख़्याल ही
क्या आया........तेरे सिवा।

परेशानी में सहमा
दर्द में करहाया
धड़का ज़ोर से जब भी
तेरा जो ज़िक्र आया
प्रीत की धड़कनों में कोई और
कहाँ बस पाया......तेरे सिवा।

दहलीज़ पे दस्तक
शायद दरवाज़ा किसी
झोंके ने है हिलाया
इंतज़ार ने दूर तलक
रास्ता निहारा
मेहमां आते हैं घर में यूँ तो
मेरे इंतज़ार की तलब
कौन भर पाया........तेरे सिवा।

मैंने चाहा ही क्या तुमसे
इक....................तेरे सिवा।❤️❤️

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