कुछ पथरीले
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर
लग जाती है
अकसर ठोकर
गिर ना जाऊँ कही
मुझे संभालने
तुम आना।
क़ायम तो रहती हैं
प्रीत के लबों पे
मुसकुराहटें यूँ ही
दबे अश्कों के
सैलाब में ढूब
जाने से बचाने
तुम आना।
इक सफ़र रूहानियत का
आँखों से रूह तलक
इस तलब ए हसरत को
मेरे अक्स ओ रूह तक
महफ़ूज़ करने
तुम आना।
इश्क़ के स्टेशन से
इक ट्रेन गुज़रती है
हर रोज़
एक सीट रोक रखी है
तुम आना।❤️❤️
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर
लग जाती है
अकसर ठोकर
गिर ना जाऊँ कही
मुझे संभालने
तुम आना।
क़ायम तो रहती हैं
प्रीत के लबों पे
मुसकुराहटें यूँ ही
दबे अश्कों के
सैलाब में ढूब
जाने से बचाने
तुम आना।
इक सफ़र रूहानियत का
आँखों से रूह तलक
इस तलब ए हसरत को
मेरे अक्स ओ रूह तक
महफ़ूज़ करने
तुम आना।
इश्क़ के स्टेशन से
इक ट्रेन गुज़रती है
हर रोज़
एक सीट रोक रखी है
तुम आना।❤️❤️
Comments
Post a Comment