तसव्वुर मे बसती हैं
कभी रूबरू हो जाती हैं
कुछ यादें कल की
जो बहुत आज सी हैं।

इक ठीस दर्द की
जिस्म से रूह तलक
आइने में दर्ज तो
मुसकुराहटें साज सी हैं।

ज़रा पलट तुम मुझे
इक नज़र ज़िंदा करना
प्रीत में हरकत तो है
धड़कनें नाराज़ सी हैं।

ना करो जिद्द मुझसे
तुम मुलाक़ात की
लफ़्ज़ों की तालाश में
ख़ामोशी ही आवाज़ सी हैं।

ज़रा कोई पढ़ दो
मेरे हक़ में इक दुआ
आज तबीयत मेरी
थोड़ी नासाज़ सी है।❤️❤️

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