हाल ए दिल
समझायें क्या
गर लफ़्ज़ों को
पढ़ने की सवाल
ना हो।
सब शायरी बेकार है
गर समझ
लफ़्ज़ों की
गहराई की ना हो।

ना समझे नज़रिया
कोई ग़म नहीं
गर कोई किसीका
दिलदार ना हो।
अब क्या सुनायें
दर्द ए मोहब्बत
गर किसी को आपसे
प्यार ना हो।

ना गुनगुना पायें
कोई ग़म नहीं
गर सुर की सही
पहचान ना हो।
प्रीत के नगमें
बेमक़सद हैं जानम
गर इश्क़ रूह में
बस पाया ना हो।

दूरियों का कोई
ग़म नहीं
गर फ़ासले दिल में
ना हों
नज़दीकियाँ बेकार हैं
गर जगह दिल में
ना हो।❤️❤️

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