ज़िंदगी ने मुझे
इक रोज़ अता किया
मुस्कुराती  क़िस्मत
इश्क़ ए लकीर के बिना
मैंने हाथ झटक लिया
कि मुझे तक़दीर में
चाहत उसी की है।

मुझे पेश हुई
मंज़िल ए हसरत
मगर उसके साथ बिना
मैं दुसरी राह मुड़ चला
कि मुझे मंज़िल की नहीं
तालाश ए हमसफ़र
उसी की है।

मेरे दिल को भी
इक फ़रमान हुआ
धड़कना लाज़िमी है
मगर उसके नाम बिना
मैंने जीने से तौबा कर ली
कि मेरे दिल की धड़कनों को
ख़्वाहिश ए प्रीत
उसी की है।

मुझे हुक्म हुआ
कुछ और माँगूँ
मगर उसके सिवा
मैं दस्त ए दुआ से
उठ गया कि मुझे
जुस्तजू उसी की है।❤️❤️

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