सबर् के कड़वे
घूँट में जी कर
ज़हर हो गया है
कौन ये पी कर
पल भर रूक तो
मेरी तमन्ना
मैं परख तो लूँ
ये ज़ायक़ा पी कर।

सैलाब अश्कों का
दिल ए ज़मीं कर
सिसक गया है कौन
लबों पे हँसी ले कर
इक घड़ी सँभल तो
ऐ मेरी धड़कन
जरा चेहरा धो लूँ
अश्कों का इल्ज़ाम
पानी को दे कर।

ख़्वाबों की लाश
सुपुर्द ए ज़मीं कर
साँस लेता है कौन
घुटकर गर्द होकर
जरा सुनो ना तुम
ऐ मेरी प्रीत
मैं थोड़ा ज़िंदा कर दूँ
उधार इक साँस ले कर।

हसरतों का ख़ून पी कर
मर गया है कौन जी कर
सबर् कर कुछ तो
ऐ मेरे लहू
मैं देखता हूँ जरा
ज़ख़्म सी कर।❤️❤️

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