ताज्जुब ये नहीं कि
दहलीज़ पे लगी
नज़र बाक़ी है
ताज्जुब तो ये है कि
नाउम्मीद दस्तक
के बाद भी वही
इंतज़ार बाक़ी है।
दर्द ये नहीं कि
ज़ख़्मों का छिल कर
रिसना बाक़ी है
दर्द तो ये है कि
अश्कों की ठीस
के बाद भी होंठों पर
मुसकान बाक़ी है।
बेचैनी ये नहीं कि
सनम की दीदार ए प्रीत
बाक़ी है
बेचैनी तो ये है कि
मिलने के बाद भी उसकी
तलब ए मोहब्बत बाक़ी है।
कशिश ये नहीं कि
तन्हाई भरी ये
राह बाक़ी है
कशिश तो ये है कि
रूसवाई के बाद भी
उसी की चाह बाक़ी है।❤️❤️
दहलीज़ पे लगी
नज़र बाक़ी है
ताज्जुब तो ये है कि
नाउम्मीद दस्तक
के बाद भी वही
इंतज़ार बाक़ी है।
दर्द ये नहीं कि
ज़ख़्मों का छिल कर
रिसना बाक़ी है
दर्द तो ये है कि
अश्कों की ठीस
के बाद भी होंठों पर
मुसकान बाक़ी है।
बेचैनी ये नहीं कि
सनम की दीदार ए प्रीत
बाक़ी है
बेचैनी तो ये है कि
मिलने के बाद भी उसकी
तलब ए मोहब्बत बाक़ी है।
कशिश ये नहीं कि
तन्हाई भरी ये
राह बाक़ी है
कशिश तो ये है कि
रूसवाई के बाद भी
उसी की चाह बाक़ी है।❤️❤️
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