किसको सुनायें जो
जाने दर्द लफ़्ज़ों
दरार के
कोई वाक़िफ़ ही
नहीं बिखरते अल्फाजों से
रंगीन तहरीरों के सिवा।
किसको वास्ता है जो
समझे टूटते
ग़ज़ल म्यार के
कोई ढूबता नहीं
ढूँढने मोती
समन्दर ए कलेजे अब
चमकते पत्थरों के सिवा।
किसको है तमन्ना
कि जाने
सिसकते दर्द प्यार के
कोई करता ही नहीं
टूट कर प्रीत अब
दिलल्गी सहारों के सिवा।
किसको फ़ुरसत है
कि समझे
मायने अशआर के
कोई कुछ पढ़ता
नहीं अब
इश्तिहारों के सिवा।❤️❤️
जाने दर्द लफ़्ज़ों
दरार के
कोई वाक़िफ़ ही
नहीं बिखरते अल्फाजों से
रंगीन तहरीरों के सिवा।
किसको वास्ता है जो
समझे टूटते
ग़ज़ल म्यार के
कोई ढूबता नहीं
ढूँढने मोती
समन्दर ए कलेजे अब
चमकते पत्थरों के सिवा।
किसको है तमन्ना
कि जाने
सिसकते दर्द प्यार के
कोई करता ही नहीं
टूट कर प्रीत अब
दिलल्गी सहारों के सिवा।
किसको फ़ुरसत है
कि समझे
मायने अशआर के
कोई कुछ पढ़ता
नहीं अब
इश्तिहारों के सिवा।❤️❤️
Comments
Post a Comment