बेख़बर हैं ज़िंदगी के
अगले पल से साहेब
अश्कों ने दामन जोड़ा है
मुसकुराहटों से।

बेसुध हैं अब उस
आलम से साहेब
सहरा को तलब हुई है
बारिश की बूँदों से।

अनजान बहुत हैं
उस पहलू से साहेब
सहर को प्रीत हुई है
शब ए चाँद से।

देखते हैं अब क्या
मुक़ाम आता है साहेब
सूखे पत्ते को
इश्क़ हुआ है
बहती हवा से।❤️❤️

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