शब ए चाँद  हूँ मैं
सहर बादामी भी हूँ
ओस की नर्म बूँद हूँ
समन्दर का सुनामी भी हूँ
बरस जांऊ कहीं टूट कर
कहीं सहरा हूँ , नम नहीं
कहीं ज़िक्र ही मेरा
कहीं बेमानी हूँ  मैं।

टूटी सी इक उम्मीद हूँ मैं
पूरा सा इक ख़्वाब भी हूँ
कहीं कोढ़ी के मोल में हूँ
और कहीं नायाब भी हूँ
कहीं रूह तलक मैं
कहीं अक्स भी नहीं
सवाल हूँ मैं कहीं
जवाब भी हूँ ।

नज़्म में दर्द हूँ मैं
इक मरहम ग़ज़ल भी हूँ
कहीं लफ़्ज़ों का है सूखा
कहीं अल्फाज सजल भी हूँ
प्रीत हूँ मैं बेहिसाब कहीं
इक बूँद इश्क़ भी नहीं
कहीं सिफ़र (zero)हूँ मैं
और कहीं फ़ज़ल भी हूँ ।

एक रास्ता हूँ मैं
मुसाफ़िर भी हूँ
सजदे में हूँ
मैं काफ़िर भी हूँ
बहुत दूर तक है
कहीं कुछ भी नहीं
आग़ाज़ हूँ मैं
आख़िर भी हूँ ।❤️❤️

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