ज्जब हुआ
रूह-ए-अक्स-मोहब्बत का
रूयाब जिस पर
दफ़्न हो कर क़ब्र में भी
तुझे पाने की इक
ख़्वाहिश ना गई।

जुड़ गया
दुआ-ओ-इश्क में
महबूब का नाम
जिस पल
मिट गई हर
तमन्ना फिर भी
एहसासों से
दिलरूबाई ना गई।

दर्ज कर गया
हर लफ़्ज़ -ए-ग़ज़ल
प्रीत का ख़याल जिस पर
अंदाज़ ए बयां करके भी
क़लम से तेरे ज़िक्र की
लिखाई ना गई।

पड़ गया
हुस्न -ए-रूख-याद
का परतव जिस पर
ख़ाक में मिल के भी
इस दिल की
सफ़ाई ना गई।❤️❤️

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