कभी तो टटोल कर देखो
तुम अपनी आँखों के
अंधेरे कोनों में
चुभेंगीं नुकीली किरचनें
उन ख़्वाबों की.. जिन्हें
तुम चुपचाप
गला दबा कर मार देते हो।

कभी जाना है तुमने
कि तुम ख़ुद में
खुद के लिए बाक़ी
कितने हो
जाओ..तालाश लो
नहीं पाओगे
जिस्म से रूह तक
तुम खुद को ऐ प्रीत
ये ज़िंदगी जो तुम
दूसरों के लिए
वार देते हो।

कभी तो ढूँढ लाओ
अपना वजूद
अपनी ही तहों में
पड़ा दफ़्न कहीं
 साँस लेती इक
लाश को पाओगे
जिसे तुम ज़िंदा
क़रार देते हो।

कभी तो खोदकर
देखो तुम अपनें
जिस्म की क़ब्रें
मिलें गी ख़्वाहिशें कुछ
जिन्हें तुम
अंदर ही मार देते हो।❤️❤️

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