तेरी यादों के दामन में
खुद को समेटते
यूँ लगा ...कि
इज़हार ए वफ़ा से
तन्हा कुछ भी नहीं।

तुम्हें आइने के अक्स में
रूह तक तलाशते
यूँ लगा ...कि
मेरा तारूख मुझमें
तेरी मौजूदगी के सिवा
और कुछ है ही नहीं।

तुम्हें सहेज कर खुद के
दिल ए क़ब्र रखते
यूँ लगा ...कि
प्रीत की जान
तेरी धड़कनों से परे
कहीं भी नहीं।

तुम्हें सोचते हर लम्हा
मेरे तसव्वुर के झरोंखों में
यूँ लगा ...कि
तालाश ख़्वाबों की
तेरे बिना कोई नहीं।

तुम्हें लिखते हुए
यूँ लगा ...कि
इंतज़ार से लंबा
कोई शब्द नहीं।❤️❤️

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