दास्तानें मोहब्बत की
किताबों के लफ़्ज़ों
 में ही नहीं
जिंदा दिलों के
तहखानों में मिले।

चाँद भी दिखा नहीं
रात की सेज पे
उससे कहना अब
दिन के उजालों में मिले।

मुसकहटों तले दफ़न है
वो आहह दर्द की
ज़िंदगी हसीं है.......
हाँ सुना तो है
पर ये तो बस
मिसालों में मिले।

प्रीत ने पाया है तुम्हें
अपनी रूह ए धड़क में
अकसर तुम उलझे से
मेरे बालों में मिले।❤️❤️

Comments

Popular posts from this blog