दहलीज़ की घंटियों की
कन्नाहट पे
घर के पर्दों की सरसराहट पे
मेरी करवट के पीछे
तेरे वजूद की आहट पे
जब कुछ यूँ  तेरे होने का
आभास होता है...या
इक ख़याल है.....
ख़याल ही है शायद।

आँगन में सूखे पत्तों की
चरमराहट पे
परिंदों की अचानक चहचहाट पे
हवा में तेरी ख़ुशबू की
तरावट पे
जब कुछ अपने आस पास
यूँ तेरा एहसास होता है ...या
इक ख़याल है.....
ख़याल ही है शायद।

तन्हा बैठी तेरी यादों में
मुस्कुराहट पे
रोती आँखों में लबों की कर्राहट पे
अपने रूखसार पे तेरी छुअन की
झनझनाहट पे
जब प्रीत को तुम्हारी आग़ोश
कुछ यूँ महसूस होती है ...या
इक ख़याल है.....
     हाँ
ये ख़याल ही है ....शायद।❤️❤️

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