क्यूँ इक सोच
मेरे मन की
वही ख़याल तेरे
ज़हन में ना हो
वो ताल्लुक़ ए वफ़ा
ही क्या ..
जो इधर हो उधर ना हो।

क्यूँ इक कसक
मुलाक़ात की
तुझे भी वही
जुस्तजू ना हो
वो तड़प ए मोहब्बत
ही क्या ..
जो इधर हो उधर ना हो।

क्यूँ इक तलब
दीदार की
उस सहरा को बारिश की
प्यास ना हो
वो सबर् ए प्रीत
ही क्या ..
जो इधर हो उधर ना हो।

क्यूँ इक दिल की
दूसरे दिल को
ख़बर ना हो
वो दर्द ए इश्क़
 ही क्या ..
जो इधर हो उधर ना हो।❤️❤️

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