बेशक तू गुम है
सहरा की तनहाईयों में कहीं
अपनी मोहब्बत तेरे इश्क़ को
सौंप रखी है
एतबार है इस क़दर कि
तू बदलेगा नहीं
बस..इसी तसल्ली पर
बदगुमानियां ज़हन से
रोक रखी हैं।

दूरियाँ है क़यामत की
दरमियाँ अपने
फिर भी सबसे नज़दीकियों की
कड़ी तुमसे जोड़ रखी है
महफ़ूज़ है प्रीत की नाज़ुक
धड़कनें तुझमें
बस..इसी हिफ़ाज़त के सदके
सांसें रोक रखी हैं।

कि तू जहाँ भी होगा
हमें चाहेगा
इस बेचैनी में ज़िंदगी
झोंक रखी है
और तू कहीं आये तो तुझे
कुछ बदला ना मिले
बस..इसी वजह से
घड़ी की सुइयाँ रोक रखी हैं।❤️❤️

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