ना भर यूँ सिसकियों को
अपने लफ़्ज़ों में यहाँ
ऐ-मेरी पगली क़लम
लोगों के दबे ज़ख़्म
उभर जाते हैं
दर्द मे कराहते अल्फाजों में
अपनी आहह समझ कर।

ना ... ना पिरोया कर
अपने अश्कों को
पन्नों के क़रीने यहाँ
ऐ- मेरी स्याही जिगर
लोग ढूब जाते हैं
अपनी आँखों का
खारा समन्दर समझ कर।

ना  कर अपनी
प्रीत के ज़ख़्म
पैग़ाम ए इश्क़ की जुबां
ऐ- लड़खड़ाती धड़कनों
लोग रूठ जाते हैं
अपनी मोहब्बत से
वही इक गिला समझ कर।

ना किया कर
अपने दर्द को
शायरी में बयां
ऐ-नादान दिल
कुछ लोग टूट जाते हैं
इसे अपनी दास्ताँ समझ कर।❤️❤️

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