प्रीत की बेड़ियों से
जकड़ कर उनके पाँव
अपनी क़ैद में कर लिया होता
गर इख़्तियार मेरा
उनकी हर राह पर होता
यूँ ना हिजर् में जल कर
बिखरते हम भी
गर मेरी बंजर साँसों पर
उसके सिवा बरसता बादल
कोई और होता।

वास्ता देते गुज़रे जा रहे
वक़्त और उम्र का उनको
गर उनके लम्हों पर
मुझे इक हक़ मेरा होता
यूँ ना तड़पते इंतज़ार में
अक्स ओ रूह तलक
गर इक मुकम्मल ज़िंदगी
उसके साथ जीने का
हक़ सिर्फ़ मेरा होता।

हाथ पकड़ के
रोक लेते उनको
गर उन पर मेरा कोई ज़ोर होता
ना रोते हम भी
उनके लिए पागलों की तरह
गर हमारी ज़िंदगी में
उनके सिवा कोई और होता।❤️❤️

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