मुझे दबाए राजों से
गिला है अकसर
मुँह पे खरा सुनने की
आदत के ख़ैर
आदी हैं हम।

मुझे झूठे बुने
सपनों के बाग़ों से
शिकायत है अकसर
उधड़े टूटे ख़्वाबों के तो
ख़ैर आदी हैं हम।

मुझे बेअसर दवा से
मलाल है अकसर
प्रीत के दर्दों की ठीस के
तो ख़ैर आदी हैं हम।

मुझे अश्क़ समंदर
आँखों में दफ़्न करने से
एतराज़ है अकसर
दरारों में टूटी
मुसकान के तो ख़ैर
आदी हैं हम।

मुझे लहजे ख़फ़ा
करते हैं अकसर
लफ़्ज़ों के तो ख़ैर
आदी हैं हम।❤️❤️

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