मैंने ये सोच कर
बोये नहीं
ख़्वाबों के दरख़्त
कौन..जंगल में लगे
पेड़ को पानी देगा।

मैंने ये सोच कर
पसीजी नहीं
दिल ए ज़मीं सख़्त
कौन..सहरा में बंजर
को बारिश देगा।

मैंने ये सोच कर
महकाये नहीं
ख़्वाहिशों के गुल दस्त
कौन..जंगली बूटियों की
महक संजो देगा।

मैंने ये कुछ भी
नहीं सोचा ...
बोने से महकने तक
तुम मिले ...प्रीत के
ख़्वाबों के दरख़्त
बोने से संजोने तक का
चमन तेरा इश्क़ अब
सज़ा देगा।❤️❤️

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