ग़ज़ल भी तुम
साज भी तुम
मैं तो इक कोरा काग़ज़
इक लफ़्ज़ दो तुम तो
मैं सरगम सी जी उठूँ ।

सुकूं भी तुम
बेचैनी भी तुम
मैं तो इक बस याद तुम्हारी
इक ख़याल मुझपे दो तुम तो
मैं हर साँस जिंदा हो उठूँ ।

बहक भी तुम
महक भी तुम
मैं तो इक हवा
लिपटी रूह तुम्हारी
इक स्पर्श मुझे दो तुम तो
मैं रोम रोम प्रीत हो उठूँ ।

गूँज भी तुम
स्वर भी तुम
मैं तो इक बेजान बाँसुरी
इक साँस दो तुम तो
मैं बस गुनगुना उठूँ ।❤️❤️

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