लफ़्ज़ों को सींच कर
ग़ज़लों को बुनता रहता है
        शायर
क्या जाने, बुने ताने बाने का
टूटता हर फंदा है।

दर्द अश्क़ ज़ख़्मों को
मरहम से सिलता रहता है
          शायर
बेख़बर ,दुनिया के वार से
नासूर बना दें , कुरेद कर
यही दुनिया का धंधा है।

क़समों यादों वादों को
अपने हर्फों महफ़ूज़ रखता है
            शायर
प्रीत की वीरान बस्तियों में
देता हर सनम को कंधा है।

आईना बेचता फिरता है
             शायर
उस शहर में जो शहर ही अंधा है।❤️❤️

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