शिकायत ये नहीं कि
मेरी आँखों में नमी कितनी है
बात तो ये है कि
मेरी मुस्कुराहट में
तुम्हें समझ आई कितनी है।

गिला ये नहीं कि
मेरी ख़्वाहिशें अधूरी कितनी हैं
सोचना तो ये है कि
उनमें से कुछ
मुकम्मल करने को
तुमने जान लगाई कितनी है।

अफ़सोस ये नहीं कि
खिजा मेरी दहलीज़
ठहरती कितनी है
बात तो ये है कि
मेरी पतझड़ को बदल
तुमने बहार लाई कितनी है।

तंज ये नहीं कि
प्रीत तन्हा कितनी है
उम्मीद तो ये है कि
तन्हाई हटा तुमने उसके लिए
महफ़िल सजाई कितनी है।

मसला ये नहीं कि
मुझे तकलीफ़ कितनी है
मुद्दा तो ये है कि
तुम्हें परवाह कितनी है।❤️❤️

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