मैंने नहीं चाहा मेरे हुस्न को
तारीफ़ ए जवाब दे
या फिर प्रीत की
मिसाल ए रिवाज दे
आज बहुत उदास है दिल मेरा
दर्द में लिपटी ख़ामोशी को
बस इक मरहमी आवाज़ दे।

मैंने कब चाहा मुझे
अव्वल ए शबाब दे
या फिर टूटती धड़कनों को
जोड़ता इक साज दे
आज बेहद उदास है दिल मेरा
ढूबती धड़कनों को
बस अपने सीने की आवाज़ दे।

मैंने कब चाहा मेरे दिलकश
रूखसार को हिजाब दे
या फिर इश्क़ का ताज दे
आज बहुत ग़मज़दा है दिल मेरा
तेरे हिजर् में मेरी नम पलकों को
बस जरा गर्म साँसों की आवाज़ दे।

मैंने कब चाहा मुझे
इक गुलाब दे
या फिर मोहब्बत से नवाज़ दे
आज बहुत उदास है दिल मेरा
ग़ैर बनके ही सही
तू मुझे आवाज़ दे।❤️❤️

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