मैं रहूँ ना रहूँ
तुम रहो ना रहो
मगर....वक़्त नहीं रहता
बहते पानी सा
हर लम्हा निकल जाता है।
ज़िंदगी का कांरवां
पल पल चलता
कौन कैसे किससे
कब बिछड़ जाता है।
मैं किस क़दर हूँ ख़ास
मेरे बहुत अपनों के लिए
इसी मोह प्रीत में
नादां मन बहल सा जाता है।
सच ....सच तो ये है......
कोई किसी का नहींद
किसी के बिन भी
किसी का काम रूकता नहीं
कमी... कब तक खले
यहाँ वक़्त हर शख़्स का निकल जाता है।
ख़ुशी बड़ी या ग़म छोटा
दर्द गहरा या मुस्कान के लिबास में लपेटा
हर पल हर लम्हें का
मंज़र बदल जाता है। ❤️❤️

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