ख़्वाबों की टूटी किरचनें बिखरी हर तरफ़
पलकों की ओट में इस क़दर
नींद भी इक लम्हा इक झपक
आँखों में आने को सोचती है।

बेचैनियों से लबालब भरा है
दिल कुछ इस क़दर
धड़कनें भी प्रीत की मीठी लय पर
दिल में सजने को सोचती हैं।

बदहवासियां ज़िंदगी को समेट कर
गुम से रास्तों पे इस क़दर
मंज़िलों का इक निशां पाने को तरसती हैं।

ख़्वाहिशों से भरा पड़ा है
घर कुछ इस क़दर
रिश्ते ज़रा सी जगह को तरसते हैं।❤️❤️

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