हर बार मेरे रूबरू आते रहे हो तुम
हर बार तुमसे मिलकर बिछडती रही हूँ मैं

इक ख़्वाब सी ही है ये मुलाक़ात तुमसे
हर बार इस ख़याल को सच मान जीती रही हूँ मैं

कुछ लम्हे सुकूं ए ज़िंदगी मुक़र्रर किए तुमने
उन्हीं लम्हों को जीने के लिए मरती रही हूँ मैं

मेरे दिल को इश्क़ ए ख़याल से संभाला जो तुमने
हर बार प्रीत की आँच में मोम बन पिघलती रही हूँ मैं ❤️❤️

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