लबों की मुसकुराहटों पे
हर दिल फ़िदा तो होतें हैं
फिर आँखों के सैलाब से
इस क़दर क्यों डरते हो
हंस कर कहें जो नज़्म तो
हर अल्फ़ाज़ पे वाह होती है
दर्द जो बरसा लफ़्ज़ों में तो
उस आह से फिर क्यों डरते हो
ऐ प्रीत .......ये भी तो कमाल है ना
कि हमें चाँद तो कहते हो
फिर दाग क़बूल करने से
इतना भला क्यों डरते हो❤️❤️

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