मोहब्बतों का सिला
कहीं तो मिले ऐ दिल
आजकल हर दिल को
बेवफ़ाई क़बूल बहुत है।
शराफ़त के बीज
बोये तो थे ज़मीर ए ज़मीं पर
नहीं खिले फूल
ज़मीं बंजर बहुत है।
बैरी है इंसा ही इंसानियत का
दया का दामन कोसों दूर है
जब आयें बाढ़ , तूफां या जलजला
कहता है... खुदा बेरहम बहुत है।
चाहती हूँ ...ऐ प्रीत इस बार बरसे
कुछ यूँ ईमान की बारिश
लोगों के ज़मीर पर धूल बहुत है ।❤️❤️

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