कुछ ख़्वाब बुने
पलकों ने
आँखों ने पनाह से दिया टोक
कुछ नाज़ुक सी ख़्वाहिशों ने
क़दम जो बढ़ाये
बंदिशों के दायरों ने लिया रोक
कुछ धड़कनों नें चुप से
बुन लिया इक साज जो
गुनगुनाना तो चाहा मगर
रूक गया आके लबों की नोक
इक नन्ही सी तमन्ना प्रीत लिए
रह गई.....बंद आँखों में
जज़्ब ज़हन में
घुटी सी दिल में
रुके से क़दमों में.......यही सोच
कि कुछ कह तो ना देंगे लोक.....❤️❤️

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