मेरे अल्फाजों को पसंद है
बोलने से ज़्यादा लिखना
मोहब्बत है इस क़दर
इस काग़ज़ से मुझे
ये मेरे हर लफ़्ज़ को
उतार लेता है अपने सीने पे
यहां मेरी ख़ामोशी भी बोलती है
मेरा दर्द  भी चीख़ लेता है
दबी खाव्हिशें भी उभरती हैं
मेरे हर एहसास को सहेज लेता है
ना करता है गिला
ना कोई एतराज़ करता
मेरे हर लहजे ,मिज़ाज को
बड़ी प्रीत से
बिना कोई शिकायत
अपने सीने पे दर्ज करता है
मेरे हर दर्द रंज शिकवा मोहब्बत
बड़ी ख़ामोशी से
ख़ुद में उतार लेता है
फिर मेरा भी फ़ितूर
इसके लिएआया सुरूर
मुझे.कुछ बयां को मजबूर
करता है.....और फिर मुझे
बोलने से ज़्यादा
लिखना बेहतर लगता है।❤️❤️

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