ज़िंदगी कुछ लम्हे तालाश करती है
तेरी ख़ुश्बू कभी मुझमें तालाश करती है

कभी महफ़िल में भी तन्हाई ढूँढे
कभी अकेले में तेरा क़रीबी एहसास तालाश करती है

पीले सूखे बिखरे हुए पत्तों की खिजा
वही हसीं फ़िज़ा तालाश करती है

इक उम्मीद बार बार आकर मुझमें
अपने टूटे टुकड़े तालाश करती है

हर दस्तक पे चौंक कर प्रीत क्यूँ
इक ख़ास की आहट तालाश करती है

सांसे हैं धड़कन है जिस्म ज़िंदा भी है शायद
मेरी रूह तेरी इक छुअन की ज़िंदगी तालाश करती है❤️❤️

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