कहो ना ...क्या तुम्हें फ़र्क़ पड़ता है
कहो ना.......
क्या तुम्हें कोई फ़र्क़ पड़ता है?
तन्हाइयों में मेरे इक ख़्याल से
मैं रूबरू नहीं ......मलाल से
मेरे लबों पे बिखरी हँसी से
या आँखों में क्यूँ है नमी..इस बेकसी से
ये लंबे सालों के इंतज़ार से
दिल की अनकही बातों के इंतज़ार से
प्रीत का हर बात में आते ज़िक्र से
हर वक़्त होती सिर्फ़ मेरी फ़िक्र से
कहो ना........तुम्हें फ़र्क़ तो पड़ता है ना??❤️❤️
क्या तुम्हें कोई फ़र्क़ पड़ता है?
तन्हाइयों में मेरे इक ख़्याल से
मैं रूबरू नहीं ......मलाल से
मेरे लबों पे बिखरी हँसी से
या आँखों में क्यूँ है नमी..इस बेकसी से
ये लंबे सालों के इंतज़ार से
दिल की अनकही बातों के इंतज़ार से
प्रीत का हर बात में आते ज़िक्र से
हर वक़्त होती सिर्फ़ मेरी फ़िक्र से
कहो ना........तुम्हें फ़र्क़ तो पड़ता है ना??❤️❤️
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